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नमः॑ कप॒र्दिने॑ च॒ व्यु᳖प्तकेशाय च॒ नमः॑ सहस्रा॒क्षाय॑ च श॒तध॑न्वने च॒ नमो॑ गिरिश॒याय॑ च शिपिवि॒ष्टाय॑ च॒ नमो॑ मी॒ढुष्ट॑माय॒ चेषु॑मते च ॥२९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। क॒प॒र्दिने॑। च॒। व्यु᳖प्तकेशा॒येति॒ व्यु᳖प्तऽकेशाय। च॒। नमः॑। स॒ह॒स्रा॒क्षायेति॑ सहस्र॒ऽअ॒क्षाय॑। च॒। श॒तध॑न्वन॒ इति॑ श॒तऽध॑न्वने। च॒। नमः॑। गि॒रि॒श॒यायेति॑ गिरिऽश॒याय॑। च॒। शि॒पि॒वि॒ष्टायेति॑ शिपिऽवि॒ष्टाय॑। च॒। नमः॑। मी॒ढुष्ट॑माय। मी॒ढुस्त॑मा॒येति॑ मी॒ढुःऽत॑माय। च॒। इषु॑मत॒ इतीषु॑ऽमते। च॒ ॥२९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:29


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

गृहस्थ लोगों को किनका सत्कार करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - गृहस्थ लोगों को चाहिये कि (कपर्दिने) जटाधारी ब्रह्मचारी (च) और (व्युप्तकेशाय) समस्त केश मुंडाने हारे संन्यासी (च) और संन्यास चाहते हुए को (नमः) अन्न देवें (च) तथा (सहस्राक्षाय) असंख्य शास्त्र के विषयादि को देखनेवाले विद्वान् ब्राह्मण का (च) और (शतधन्वने) धनुष् आदि असंख्य शस्त्र विद्याओं के शिक्षक क्षत्रिय का (नमः) सत्कार करें (गिरिशयाय) पर्वतों के आश्रय से सोने हारे वानप्रस्थ का (च) और (शिपिविष्टाय) पशुओं के पालक वैश्य आदि (च) और शूद्र का (नमः) सत्कार करें (मीढुष्टमाय) वृक्ष, बगीचा और खेत आदि को अच्छे प्रकार सींचनेवाले किसान लोगों (च) और माली आदि को (इषुमते) प्रशंसित बाणोंवाले वीर पुरुष को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें और सत्कार करें ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थों को योग्य है कि ब्रह्मचारी आदि को सत्कारपूर्वक विद्यादान करें और करावें तथा संन्यासी आदि की सेवा करके विशेष विज्ञान का ग्रहण किया करें ॥२९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

गृहस्थैः के सत्कर्त्तव्या इत्युच्यते ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम् (कपर्दिने) जटिलाय ब्रह्मचारिणे (च) (व्युप्तकेशाय) विशेषतयोप्ताश्छेदिताः केशा येन तस्मै संन्यासिने (च) संन्यासमिच्छवे वा (नमः) सत्करणम् (सहस्राक्षाय) सहस्रेष्वसंख्यातेषु शास्त्रविषयादिष्वक्षिणी यस्य तस्मै विदुषे ब्राह्मणाय (च) (शतधन्वने) धनुर्विद्याद्यसंख्यशस्त्रविद्याशिक्षकाय (च) (नमः) सत्करणम् (गिरिशयाय) यो गिरिषु पर्वतेषु श्रितः सन् शेते तस्मै वानप्रस्थाय (च) (शिपिविष्टाय) शिपिषु पशुषु पालकत्वेन विष्टाय प्रविष्टाय वैश्यप्रभृतये (च) शूद्राय (नमः) सत्करणम् (मीढुष्टमाय) अतिशयेन वृक्षोद्यानक्षेत्रादिसेचकाय कृषीवलाद्याय (च) (इषुमते) प्रशस्ता इषवो बाणा विद्यन्ते यस्य तस्मै वीराय (च) भृत्यवर्गाय ॥२९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - गृहस्था मनुष्या नमः कपर्दिने च, व्युप्तकेशाय च नमः, सहस्राक्षाय च शतधन्वने च नमो, गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो, मीढुष्टमाय चेषुमते च कुर्युः प्रदद्युश्च ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थैर्ब्रह्मचारिप्रभृतीन् सत्कृत्य विद्यादानं कर्त्तव्यं कारयितव्यं च तथा संन्यास्यादीन् संपूज्य विशिष्टविज्ञानं ग्राह्यम् ॥२९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गृहस्थाश्रमी लोकांनी ब्रह्मचाऱ्यांचा सत्कार करून त्यांना दान करावे. संन्यासी लोकांची सेवा करून विशेष विज्ञान प्राप्त करावे. (तसेच वैश्य, शेतकरी, वीर पुरुष यांचाही सत्कार करावा.