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नम॒स्तक्ष॑भ्यो रथका॒रेभ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नमः॒ कुला॑लेभ्यः क॒र्मारेभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमो॑ निषा॒देभ्यः॑ पु॒ञ्जिष्ठे॑भ्यश्च वो॒ नमो॒ नमः॑ श्व॒निभ्यो॑ मृग॒युभ्य॑श्च वो॒ नमः॑ ॥२७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। तक्ष॑भ्य॒ इति॒ तक्ष॑ऽभ्यः। र॒थ॒का॒रेभ्य॒ इति॑ रथऽका॒रेभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। कुला॑लेभ्यः। क॒र्मारे॑भ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। नि॒षा॒देभ्यः॑। नि॒सा॒देभ्य॑ इति निऽसा॒देभ्यः॑। पु॒ञ्जिष्ठे॑भ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। श्व॒निभ्य॒ इति॑ श्व॒निऽभ्यः॑। मृ॒ग॒युभ्य॒ इति॑ मृ॒ग॒युऽभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑ ॥२७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:27


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् लोगों को किन का सत्कार करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे राजा आदि हम लोग (तक्षभ्यः) पदार्थों को सूक्ष्मक्रिया से बनाने हारे तुम को (नमः) अन्न देते (च) और (रथकारेभ्यः) बहुत से विमानादि यानों को बनाने हारे (वः) तुम लोगों का (नमः) परिश्रमादि का धन देके सत्कार करते हैं (कुलालेभ्यः) प्रशंसित मट्टी के पात्र बनानेवालों को (नमः) अन्नादि पदार्थ देते (च) और (कर्मारेभ्यः) खड्ग, बन्दूक और तोप आदि शस्त्र बनानेवाले (वः) तुम लोगों का (नमः) सत्कार करते हैं (निषादेभ्यः) वन और पर्वतादि में रह कर दुष्ट जीवों को ताड़ना देनेवाले तुम को (नमः) अन्नादि देते (च) और (पुञ्जिष्ठेभ्यः) श्वेतादि वर्णों वा भाषाओं में प्रवीण (वः) तुम्हारा (नमः) सत्कार करते हैं (श्वनिभ्यः) कुत्तों को शिक्षा करने हारे (वः) तुम को (नमः) अन्नादि देते (च) और (मृगयुभ्यः) अपने आत्मा से वन के हरिण आदि पशुओं को चाहनेवाले तुम लोगों का (नमः) सत्कार करते हैं, वैसे तुम लोग भी करो ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग जो पदार्थविद्या को जान के अपूर्व कारीगरीयुक्त पदार्थों को बनावें, उनको पारितोषिक आदि देके प्रसन्न करें और जो कुत्ते आदि पशुओं को अन्नादि से रक्षा कर तथा अच्छी शिक्षा देके उपयोग में लावें, उनको सुख प्राप्त करावें ॥२७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्भिः के सत्कर्त्तव्या इत्याह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम् (तक्षभ्यः) ये तक्ष्णुवन्ति तनूकुर्वन्ति तेभ्यः (रथकारेभ्यः) ये रथान् विमानादियानसमूहान् कुर्वन्ति तेभ्यः शिल्पिभ्यः (च) (वः) (नमः) वेतनादिदानेन सत्करणम् (नमः) अन्नादिकम् (कुलालेभ्यः) मृत्स्नापात्रादिरचकेभ्यः (कर्मारेभ्यः) असिभुशुण्डीशतघ्न्यादिनिर्मातृभ्यः (च) (वः) (नमः) सत्करणम् (नमः) अन्नादिदानम् (निषादेभ्यः) ये वनपर्वतादिषु तिष्ठन्ति तेभ्यः (पुञ्जिष्ठेभ्यः) ये पुञ्जिषु वर्णेषु भाषासु वा तिष्ठन्ति तेभ्यः (च) (वः) (नमः) सत्करणम् (नमः) अन्नादिदानम् (श्वनिभ्यः) ये शुनो नयन्ति शिक्षयन्ति तेभ्यः (मृगयुभ्यः) य आत्मनो मृगान् कामयन्ते तेभ्यः (च) (वः) (नमः) सत्करणम् ॥२७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं राजादयो वस्तक्षभ्यो नमो रथकारेभ्यो नमश्च, वः कुलालेभ्यो नमः कर्मारेभ्यो नमश्च, वो निषादेभ्यो नमः पुञ्जिष्ठेभ्यो नमश्च, वः श्वनिभ्यो नमो मृगयुभ्यो नमश्च दद्याम कुर्याम च तथा यूयमपि दत्त कुरुत च ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वांसो ये पदार्थविद्ययाऽपूर्वाणि शिल्पकृत्यानि साध्नुयुस्तान् पारितोषिकदानेन सत्कुर्युः। ये श्वादिपशुभ्योऽन्नादिदानेन परिपाल्य सुशिक्ष्योपयोजयेयुस्तान् सुखानि प्रापयेयुः ॥२७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान लोक पदार्थ विद्या जाणून कौशल्यपूर्वक पदार्थ तयार करतात त्यांना पारितोषिक देऊन सन्मान करावा व प्रसन्न करावे. जे लोक कुत्र्यांना (पशूंना) अन्न देतात त्यांचे रक्षण करून त्यांना प्रशिक्षित करतात. त्यांच्याकडून काम करवून घेतात त्यांचाही सत्कार करावा व त्यांना सुखी ठेवावे.