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नमो॑ ग॒णेभ्यो॑ ग॒णप॑तिभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमो॒ व्राते॑भ्यो॒ व्रात॑पतिभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमो॒ गृत्से॑भ्यो॒ गृत्स॑पतिभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमो॒ विरू॑पेभ्यो वि॒श्वरू॑पेभ्यश्च वो॒ नमः॑ ॥२५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। ग॒णेभ्यः॑। ग॒णप॑तिभ्य॒ इति॑ ग॒णप॑तिऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। व्राते॑भ्यः। व्रात॑पतिभ्य॒ इति॒ व्रात॑पतिऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। गृत्से॑भ्यः। गृ॒त्सप॑तिभ्य॒ इति॒ गृत्स॑पतिऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। विरू॑पेभ्य॒ इति॒ विऽरू॑पेभ्यः। वि॒श्वरू॑पेभ्य॒ इति॑ वि॒श्वऽरू॑पेभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑ ॥२५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:25


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (गणेभ्यः) सेवकों को (नमः) अन्न (च) और (गणपतिभ्यः) सेवकों के रक्षक (वः) तुम लोगों को (नमः) अन्न देवें (व्रातेभ्यः) मनुष्यों का (नमः) सत्कार (च) और (व्रातपतिभ्यः) मनुष्यों के रक्षक (वः) तुम्हारा (नमः) सत्कार (गृत्सेभ्यः) पदार्थों के गुणों को प्रकट करनेवाले विद्वानों का (नमः) सत्कार (च) तथा (गृत्सपतिभ्यः) बुद्धिमानों के रक्षक (वः) तुम लोगों का (नमः) सत्कार (विरूपेभ्यः) विविधरूपवालों का (नमः) सत्कार (च) और (विश्वरूपेभ्यः) सब रूपों से युक्त (वः) तुम लोगों का (नमः) सत्कार करें, वैसे तुम लोग भी देओ, सत्कार करो ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार, विद्वानों का सङ्ग, समग्र शोभा और विद्याओं को धारण करके सन्तुष्ट हों ॥२५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम् (गणेभ्यः) सेवकेभ्यः (गणपतिभ्यः) गणानां सेवकानां पालकेभ्यः (च) (वः) (नमः) अन्नम् (नमः) सत्करणम् (व्रातेभ्यः) मनुष्येभ्यः। व्रात इति मनुष्यनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.३३) (व्रातपतिभ्यः) मनुष्याणां पालकेभ्यः (च) (वः) (नमः) सत्करणम् (नमः) सत्करणम् (गृत्सेभ्यः) ये गृणन्ति पदार्थगुणान् स्तुवन्ति तेभ्यो विद्वद्भ्यः (गृत्सपतिभ्यः) मेधाविरक्षकेभ्यः (च) (वः) (नमः) सत्करणम् (नमः) सत्करणम् (विरूपेभ्यः) विविधानि रूपाणि येषां तेभ्यः (विश्वरूपेभ्यः) अखिलस्वरूपेभ्यः (च) (वः) (नमः) सत्करणम् ॥२५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं गणेभ्यो नमो गणपतिभ्यश्च वो नमो व्रातेभ्यो नमो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो गृत्सेभ्यो नमो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो विरूपेभ्यो नमो विश्वरूपेभ्यश्च वो नमो दद्याम कुर्य्याम च तथा युष्माभिरपि दातव्यं कर्त्तव्यं च ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - सर्वे जना अखिलप्राण्युपकारं विद्वत्सङ्गं समग्रां श्रियं विद्याश्च धृत्वा सन्तुष्यन्तु ॥२५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसांनी सर्व प्राण्यांवर उपकार करावा. विद्वानांच्या संगतीने विद्या प्राप्त करून शोभयमान व्हावे व संतुष्ट रहावे.