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नमो॑ बभ्लु॒शाय॑ व्या॒धिनेऽन्ना॑नां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ भ॒वस्य॑ हे॒त्यै जग॑तां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ रु॒द्राया॑तता॒यिने॒ क्षेत्रा॑णां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमः॑ सू॒तायाह॑न्त्यै॒ वना॑नां॒ पत॑ये॒ नमः॑ ॥१८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। ब॒भ्लु॒शाय॑। व्या॒धिने॑। अन्ना॑नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। भ॒वस्य॑। हे॒त्यै। जग॑ताम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। रु॒द्राय॑। आ॒त॒ता॒यिन॒ इत्या॑ततऽआ॒यिने॑। क्षेत्रा॑णाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। सू॒ताय॑। अह॑न्त्यै। वना॑नाम्। पत॑ये। नमः॑ ॥१८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:18


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - राजपुरुष आदि मनुष्यों को चाहिये कि (बभ्लुशाय) राज्यधारक पुरुषों में सोते हुए (व्याधिने) रोगी के लिये (नमः) अन्न देवें (अन्नानाम्) गेहूँ आदि अन्न के (पतये) रक्षक का (नमः) सत्कार करें (भवस्य) संसार की (हेत्यै) वृद्धि के लिये (नमः) अन्न देवें (जगताम्) मनुष्यादि प्राणियों के (पतये) स्वामी का (नमः) सत्कार करें (रुद्राय) शत्रुओं को रुलाने और (आततायिने) अच्छे प्रकार विस्तृत शत्रुसेना को प्राप्त होनेवाले को (नमः) अन्न देवें (क्षेत्राणाम्) धान्यादियुक्त खेतों के (पतये) रक्षक को (नमः) अन्न देवें (सूताय) क्षत्रिय से ब्राह्मण की कन्या में उत्पन्न हुए प्रेरक वीर पुरुष और (अहन्त्यै) किसी को न मारने हारी राजपत्नी के लिये (नमः) अन्न देवें और (वनानाम्) जङ्गलों की (पतये) रक्षा करने हारे पुरुष को (नमः) अन्नादि पदार्थ देवें ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - जो अन्नादि से सब प्राणियों का सत्कार करते हैं, वे जगत में प्रशंसित होते हैं ॥१८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तादृशमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम् (बभ्लुशाय) यो बभ्लुषु राज्यधारकेषु शेते तस्मै (व्याधिने) रोगिणे (अन्नानाम्) गोधूमादीनाम् (पतये) पालकाय (नमः) सत्कारः (नमः) अन्नम् (भवस्य) संसारस्य (हेत्यै) वृद्ध्यै (जगताम्) जङ्गमानां मनुष्यादीनाम् (पतये) स्वामिने (नमः) सत्कारः (नमः) अन्नम् (रुद्राय) शत्रूणां रोदकाय (आततायिने) समन्तात् ततं विस्तृतं शत्रुदलमेतुं शीलमस्य तस्मै (क्षेत्राणाम्) धान्योद्भवाधिकरणानाम् (पतये) पालकाय (नमः) अन्नम् (नमः) अन्नम् (सूताय) क्षत्रियाद् विप्रकन्यायां जाताय वीराय प्रेरकाय वा (अहन्त्यै) या राजपत्नी कञ्चन न हन्ति तस्यै (वनानाम्) जङ्गलानाम् (पतये) पालकाय (नमः) अन्नम् ॥१८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - राजपुरुषादिमनुष्यैर्बभ्लुशाय व्याधिने नमोऽन्नानां पतये नमो भवस्य हेत्यै नमो जगतां पतये नमो रुद्रायाततायिने नमः क्षेत्राणां पतये नमः सूतायाहन्त्यै नमो वनानां पतये नमो देयं कार्यं च ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - येऽन्नादिना सर्वान् प्राणिनः सत्कुर्वन्ति, ते जगति प्रशंसिता भवन्ति ॥१८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक अन्न इत्यादींनी सर्व प्राण्यांचा सत्कार करतात त्यांची जगात प्रशंसा होते.