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येन॒ वह॑सि स॒हस्रं॒ येना॑ग्ने सर्ववेद॒सम्। तेने॒मं य॒ज्ञं नो॑ नय॒ स्व᳖र्दे॒वेषु॒ गन्त॑वे ॥५५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

येन॑। वह॑सि। स॒हस्र॑म्। येन॑। अ॒ग्ने॒। स॒र्व॒वे॒द॒समिति॑ सर्वऽवे॒द॒सम्। तेन॑। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। नः॒। न॒य॒। स्वः᳖। दे॒वेषु॑। गन्त॑वे ॥५५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:55


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् पुरुष वा विदुषी स्त्री ! तू (देवेषु) विद्वानों में (स्वः) सुख को (गन्तवे) प्राप्त होने के लिये (येन) जिस प्रतिज्ञा किये कर्म से (सहस्रम्) गृहाश्रम के असंख्य व्यवहारों को (वहसि) प्राप्त होते हो तथा (येन) जिस विज्ञान से (सर्ववेदसम्) सब वेदों में कहे कर्म को यथावत् करते हो (तेन) उससे (इमम्) इस गृहाश्रमरूप (यज्ञम्) सङ्गति के योग्य यज्ञ को (नः) हम को (नय) प्राप्त कीजिये ॥५५ ॥
भावार्थभाषाः - विवाह की प्रतिज्ञाओं में यह भी प्रतिज्ञा करानी चाहिये कि हे स्त्रीपुरुषो ! तुम दोनों जैसे अपने हित के लिये आचरण करो, वैसे हम माता-पिता, आचार्य्य और अतिथियों के सुख के लिये भी निरन्तर वर्त्ताव करो ॥५५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(येन) प्रतिज्ञातेन कर्मणा (वहसि) (सहस्रम्) असंख्यं गृहाश्रमव्यवहारम् (येन) विज्ञानेन (अग्ने) विद्वन् विदुषि वा (सर्ववेदसम्) सर्वैर्वेदैरुक्तं कर्म (तेन) (इमम्) गृहाश्रमम् (यज्ञम्) सङ्गन्तव्यम् (नः) अस्मान् (नय) (स्वः) सुखम् (देवेषु) विद्वत्सु (गन्तवे) गन्तुं प्राप्तुम्। [अयं मन्त्रः शत०८.६.१.२० व्याख्यातः] ॥५५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वं देवेषु स्वर्गन्तवे येन सहस्रं वहसि, येन सर्ववेदसं वहसि, तेनेमं यज्ञं नोऽस्मांश्च नय ॥५५ ॥
भावार्थभाषाः - विवाहप्रतिज्ञास्वियमपि प्रतिज्ञा कारयितव्या। हे स्त्रीपुरुषौ ! युवां यथा स्वहितायाचरतं तथास्माकं मातापित्राचार्य्यातिथीनां सुखायापि सततं वर्त्तेयाथामिति ॥५५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विवाह करताना अनेक प्रतिज्ञा केल्या जातात त्यापैकी ही एक प्रतिज्ञा केली पाहिजे की, हे स्त्री-पुरुषांनो ! तुम्ही दोघे जण जसे आपल्या हितासाठी आचरण कराल तसे माता, पिता, गुरू व अतिथींच्या सुखासाठीही करा.