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आ वा॒चो मध्य॑मरुहद् भुर॒ण्युर॒यम॒ग्निः सत्प॑ति॒श्चेकि॑तानः। पृ॒ष्ठे पृ॑थि॒व्या निहि॑तो॒ दवि॑द्युतदधस्प॒दं कृ॑णुतां॒ ये पृ॑त॒न्यवः॑ ॥५१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। वा॒चः। मध्य॑म्। अ॒रु॒ह॒त्। भु॒र॒ण्युः। अ॒यम्। अ॒ग्निः। सत्प॑ति॒रिति॒ सत्ऽप॑तिः। चेकि॑तानः। पृ॒ष्ठे। पृ॒थि॒व्याः। निहि॑त॒ इति॒ निऽहि॑तः। दवि॑द्युतत्। अ॒ध॒स्प॒दम्। अ॒धः॒प॒दमित्य॑धःऽप॒दम्। कृ॒णु॒ता॒म्। ये। पृ॒त॒न्यवः॑ ॥५१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:51


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर के तुल्य राजा को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् पुरुष ! (चेकितानः) विज्ञानयुक्त (सत्पतिः) श्रेष्ठों के रक्षक आप (वाचः) वाणी के (मध्यम्) बीच हुए उपदेश को प्राप्त हो के जैसे (अयम्) यह (भुरण्युः) पुष्टिकर्त्ता (अग्निः) विद्वान् (पृथिव्याः) भूमि के (पृष्ठे) ऊपर (निहितः) निरन्तर स्थिर किया (दविद्युतत्) उपदेश से सब को प्रकाशित करता और धर्म पर (आ, अरुहत्) आरूढ़ होता है, उस के साथ (ये) जो लोग (पृतन्यवः) युद्ध के लिये सेना की इच्छा करते हैं, उन को (अधस्पदम्) अपने अधिकार से च्युत जैसे हों, वैसा (कृणुताम्) कीजिये ॥५१ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् मनुष्यों को चाहिये कि जैसे ईश्वर ब्रह्माण्ड में सूर्यलोक को स्थापन करके सब को सुख पहुँचाता है, वैसे ही राज्य में विद्या और बल को धारण कर शत्रुओं को जीत के प्रजा के मनुष्यों का सुख से उपकार करें ॥५१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वरवद्राज्ञा किं कार्य्यमित्याह ॥

अन्वय:

(आ) (वाचः) (मध्यम्) मध्ये भवम् (अरुहत्) रोहति (भुरण्युः) पोषकः (अयम्) (अग्निः) विद्वान् (सत्पतिः) सतां पालकः (चेकितानः) विज्ञानयुक्तः (पृष्ठे) उपरिभागे (पृथिव्याः) भूमेः (निहितः) नितरां धृतः (दविद्युतत्) प्रकाशयति (अधस्पदम्) नीचाधिकारम् (कृणुताम्) करोतु (ये) (पृतन्यवः) युद्धायात्मनः पृतनां सेनामिच्छवः ॥५१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! चेकितानः सत्पतिर्भवान् वाचो मध्यं प्राप्य यथाऽयं भुरण्युरग्निः पृथिव्याः पृष्ठे निहितो दविद्युतदारुहत् तेन ये पृतन्यवस्तान्नधस्पदं कृणुताम् ॥५१ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वांसो राजानो यथेश्वरो ब्रह्माण्डस्य मध्ये सूर्य्यं निधाय सर्वान् सुखेनोपकरोति, तथैव राज्यमध्ये विद्याबले धृत्वा शत्रून् जित्वा प्रजास्थान् मनुष्यानुपकुर्य्युः ॥५१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान माणसांनी हे जाणावे की जसा ईश्वर ब्रह्मांडात सूर्याची निर्मिती करून त्याची स्थापना करतो व सर्वांना सुख देतो तसे राजाने आपल्या राज्यात विद्या व बलाने शत्रूंना जिंकून प्रजेला सुख द्यावे.