वांछित मन्त्र चुनें

येन॒ऽऋष॑य॒स्तप॑सा स॒त्रमाय॒न्निन्धा॑नाऽअ॒ग्नि स्व॑रा॒भर॑न्तः। त॑स्मिन्न॒हं नि द॑धे॒ नाके॑ऽअ॒ग्निं यमा॒हुर्मन॑व स्ती॒र्णब॑र्हिषम् ॥४९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

येन॑। ऋष॑यः। तप॑सा। स॒त्रम्। आय॑न्। इन्धा॑नाः। अ॒ग्निम्। स्वः॑। आ॒ऽभर॑न्तः। तस्मि॑न्। अ॒हम्। नि। द॒धे॒। नाके॑। अ॒ग्निम्। यम्। आ॒हुः। मन॑वः। स्ती॒र्णब॑र्हिष॒मिति॑ स्ती॒र्णऽब॑र्हिषम् ॥४९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:49


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (येन) जिस (तपसा) धर्मानुष्ठानरूप कर्म से (इन्धानाः) प्रकाशमान (स्वः) सुख को (आभरन्तः) अच्छे प्रकार धारण करते हुए (ऋषयः) वेद का अर्थ जाननेवाले ऋषि लोग (सत्रम्) सत्य विज्ञान से युक्त (अग्निम्) विद्युत् आदि अग्नि को (आयन्) प्राप्त हों, (तस्मिन्) उस कर्म के होते (नाके) दुःखरहित प्राप्त होने योग्य सुख के निमित्त (मनवः) विचारशील विद्वान् लोग (यम्) जिस (स्तीर्णबर्हिषम्) आकाश को आच्छादन करनेवाले (अग्निम्) अग्नि को (आहुः) कहते हैं, उस को (अहम्) मैं (नि, दधे) धारण करता हूँ ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार से वेदपारग विद्वान् लोग सत्य का अनुष्ठान कर बिजुली आदि पदार्थों को उपयोग में लाके समर्थ होते हैं, उसी प्रकार मनुष्यों को समृद्धियुक्त होना चाहिये ॥४९ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(येन) कर्मणा (ऋषयः) वेदार्थवेत्तारः (तपसा) धर्माऽनुष्ठानेन (सत्रम्) सत्रा सत्यं विद्यते यस्मिन् विज्ञाने तत् (आयन्) प्राप्नुयुः (इन्धानाः) प्रकाशमानाः (अग्निम्) विद्युदादिम् (स्वः) सुखम् (आभरन्तः) समन्ताद्धरन्तः (तस्मिन्) (अहम्) (निदधे) (नाके) अविद्यमानदुःखे सुखे प्राप्तव्ये सति (अग्निम्) उक्तम् (यम्) (आहुः) वदन्ति (मनवः) मननशीला विद्वांसः (स्तीर्णबर्हिषम्) स्तीर्णमाच्छादितं बर्हिरन्तरिक्षं येन तम् ॥४९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - येन तपसेन्धानाः स्वराभरन्त ऋषयः सत्रमग्निमायंस्तस्मिन्नाके मनवो यं स्तीर्णबर्हिषमग्निमाहुस्तमहं निदधे ॥४९
भावार्थभाषाः - येन प्रकारेण वेदपारगाः सत्यमनुष्ठाय विद्युदादिपदार्थान् सम्प्रयुज्य समर्था भवन्ति तेनैव मनुष्यैः समृद्धियुक्तैर्भवितव्यम् ॥४९ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या प्रकारे वेद पारंगत विद्वान लोक सत्याचे अनुसरण करून विद्युत इत्यादी पदार्थांचा उपयोग समर्थपणे करू शकतात त्याचप्रमाणे सर्व माणसांनी तसे वागून समृद्धीयुक्त बनावे.