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भ॒द्राऽउ॒त प्रश॑स्तयो भ॒द्रं मनः॑ कृणुष्व वृत्र॒तूर्य्ये॑। येना॑ स॒मत्सु॑ सा॒सहः॑ ॥३९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भ॒द्राः। उ॒त। प्रश॑स्तय॒ इति॒ प्रऽश॑स्तयः। भ॒द्रम्। मनः॑। कृ॒णु॒ष्व॒। वृ॒त्र॒तूर्य्य॒ इति॑ वृत्र॒ऽतूर्य्ये॑। येन॑। स॒मत्स्विति॑ स॒मत्ऽसु॑। सा॒सहः॑। स॒सह॒ इति॑ स॒सहः॑ ॥३९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:39


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह विद्वान् कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुभग) शोभन सम्पत्तिवाले पुरुष ! आप (येन) जिस से हमारे (वृत्रतूर्य्ये) युद्ध में (भद्रम्) कल्याणकारी (मनः) विचारशक्तियुक्त चित्त (उत) और (भद्राः) कल्याण करने हारी (प्रशस्तयः) प्रशंसा के योग्य प्रजा और जिस से (समत्सु) संग्रामों में (सासहः) अत्यन्त सहनशील वीर पुरुष हों, वैसा कर्म (कृणुष्व) कीजिये ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - यहाँ (सुभग, नः) इन दो पदों की अनुवृत्ति पूर्व मन्त्र से आती है। विद्वान् राजा को चाहिये कि ऐसे कर्म का अनुष्ठान करे, जिस से प्रजा और सेना उत्तम हों ॥३९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स विद्वान् कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

(भद्राः) भन्दनीयाः (उत) अपि (प्रशस्तयः) प्रशंसनीयाः प्रजाः (भद्रम्) भन्दनीयं कल्याणकरम् (मनः) मननात्मकम् (कृणुष्व) कुरु (वृत्रतूर्य्ये) संग्रामे (येन) अत्र अन्येषामपि० [अ०६.३.१३७] इति दीर्घः (समत्सु) संग्रामेषु (सासहः) अतिशयेन सोढा ॥३९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सुभग ! त्वं येन नोऽस्माकं वृत्रतूर्य्ये भद्रं मन उतापि भद्राः प्रशस्तयो येन च समत्सु सासहः स्यात् तत्कृणुष्व ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र (सुभग) (नः) इति पदद्वयं पूर्वमन्त्रादनुवर्त्तते। विदुषा राज्ञा तत्कर्मानुष्ठेयं येन प्रजाः सेनाश्चोत्तमाः स्युः ॥३९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - यापूर्वीच्या मंत्रातील (सुभग नः) या दोन पदांची अनुवृत्ती पूर्वीच्या मंत्रातून येथे झालेली आहे. विद्वान राजाने अशा प्रकारचे कर्म करावे की, ज्यामुळे प्रजा व सेना उत्तम बनेल.