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भ॒द्रो नो॑ऽअ॒ग्निराहु॑तो भ॒द्रा रा॒तिः सु॑भग भ॒द्रो अ॑ध्व॒रः। भ॒द्राऽउ॒त प्रश॑स्तयः ॥३८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भ॒द्रः। नः॒। अ॒ग्निः। आहु॑त॒ इत्याऽहु॑तः। भ॒द्रा। रा॒तिः। सु॒भ॒गेति॑ सुऽभग। भ॒द्रः। अ॒ध्व॒रः। भ॒द्राः। उ॒त। प्रश॑स्तय॒ इति॒ प्रऽश॑स्तयः ॥३८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:38


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुभग) सुन्दर ऐश्वर्यवाले विद्वान् पुरुष ! जैसे (आहुतः) धर्म के तुल्य सेवन किया मित्ररूप (अग्निः) अग्नि (भद्रः) सेवने योग्य (भद्रा) कल्याणकारी (रातिः) दान (भद्रः) कल्याणकारी (अध्वरः) रक्षणीय व्यवहार (उत) और (भद्राः) कल्याण करनेवाली (प्रशस्तयः) प्रशंसा होवें, वैसे आप (नः) हमारे लिये हूजिये ॥३८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि जैसे विद्या से अच्छे प्रकार सेवन किये जगत् के पदार्थ सुखकारी होते हैं, वैसे आप्त विद्वान् लोगों को भी जानें ॥३८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(भद्रः) भजनीयः (नः) अस्मभ्यम् (अग्निः) पावकः (आहुतः) संगृहीतो धर्म इव (भद्रा) सेवनीया (रातिः) दानम् (सुभग) शोभनैश्वर्य्य (भद्रः) कल्याणकरः (अध्वरः) अहिंसनीयो व्यवहारः (भद्राः) कल्याणप्रतिपादिकाः (उत) (प्रशस्तयः) प्रशंसाः ॥३८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सुभग विद्वन् ! यथाऽऽहुतः सखाग्निर्भद्रो रातिर्भद्राऽध्वरो भद्र उत प्रशस्तयो भद्राः स्युस्तथा त्वं नो भव ॥३८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यथा विद्यया सुसेविता जगत्स्थाः पदार्थाः सुखकारिणो भवन्ति तथाऽऽप्ता विद्वांसः सन्तीति वेद्यम् ॥३८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जगातील पदार्थ विद्येने चांगल्याप्रकारे जाणल्यास सुखकारक ठरतात, तसेच आप्त विद्वान ही सुखकारक असतात हे माणसांनी ओळखावे.