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सखा॑यः॒ सं वः॑ स॒म्यञ्च॒मिष॒ꣳस्तोमं॑ चा॒ग्नये॑। वर्षि॑ष्ठाय क्षिती॒नामू॒र्जो नप्त्रे॒ सह॑स्वते ॥२९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सखा॑यः। सम्। वः। स॒म्यञ्च॑म्। इष॑म्। स्तोम॑म्। च॒। अ॒ग्नये॑। वर्षि॑ष्ठाय। क्षि॒ती॒नाम्। ऊ॒र्जः। नप्त्रे॑। सह॑स्वते ॥२९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:29


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य लोग कैसे होके अग्नि को जानें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सखायः) मित्रो ! (क्षितीनाम्) मननशील मनुष्य (वः) तुम्हारे (ऊर्जः) बल के (नप्त्रे) पौत्र के तुल्य वर्त्तमान (सहस्वते) बहुत बलवाले (वर्षिष्ठाय) अत्यन्त बड़े (अग्नये) अग्नि के लिये जिस (सम्यञ्चम्) सुन्दर सत्कार के हेतु (इषम्) अन्न को (च) और (स्तोमम्) स्तुतियों को (समाहुः) अच्छे प्रकार कहते हैं, वैसे तुम लोग भी उस का अनुष्ठान करो ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - यहाँ पूर्व मन्त्र से (आहुः) इस पद की अनुवृत्ति आती है। कारीगरों को चाहिये कि सब के मित्र होकर विद्वानों के कथनानुसार पदार्थविद्या का अनुष्ठान करें। जो बिजुली कारणरूप बल से उत्पन्न होती है, वह पुत्र के तुल्य है, और जो सूर्य्यादि के सकाश से उत्पन्न होती है सो पौत्र के समान है, ऐसा जानना चाहिये ॥२९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्याः कीदृशा भूत्वाग्निं विजानीयुरित्याह ॥

अन्वय:

(सखायः) सुहृदः (सम्) (वः) युष्माकम् (सम्यञ्चम्) यः समीचीनमञ्चति तम् (इषम्) अन्नम् (स्तोमम्) स्तुतिसमूहम् (च) (अग्नये) पावकाय (वर्षिष्ठाय) अतिवृद्धाय (क्षितीनाम्) मनुष्याणाम् (ऊर्जः) बलस्य (नप्त्रे) पौत्र इव वर्त्तमानाय (सहस्वते) बलयुक्ताय ॥२९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा विद्वांस सखायः सन्तः क्षितीनां वो युष्माकमूर्जो नप्त्रे सहस्वते वर्षिष्ठायाग्नये यं सम्यञ्चमिषं स्तोमं च समाहुस्तथा यूयमनुतिष्ठत ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र पूर्वमन्त्रादाहुरित्यनुवर्त्तते। शिल्पिनः सुहृदो भूत्वा विद्वदुक्तानुकूलतया पदार्थविद्यामनुतिष्ठेयुः। या विद्युत् कारणाख्याद् बलाज्जायते सा पुत्रवत्, या सूर्य्यादेः सकाशादुत्पद्यते सा पौत्रवदस्तीति वेद्यम् ॥२९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - येथे पूर्व मंत्रातील (आहुः) या पदाची अनुवृत्ती होते. कारागिरांनी सर्वांचे मित्र बनून विद्वानांच्या कथनानुसार पदार्थ विज्ञानात कार्यरत असावे. जी विद्युत कारणरूपी शक्तीने उत्पन्न होते ती पुत्राप्रमाणे असते व जी सूर्य इत्यादींच्या संपर्काने उत्पन्न होते ती पौत्राप्रमाणे असते हे जाणावे.