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पृ॒थि॒व्याः पुरी॑षम॒स्यप्सो॒ नाम॒ तां त्वा॒ विश्वे॑ऽअ॒भिगृ॑णन्तु दे॒वाः। स्तोम॑पृष्ठा घृ॒तव॑ती॒ह सी॑द प्र॒जाव॑द॒स्मे द्रवि॒णा य॑जस्वा॒श्विना॑ध्व॒र्यू सा॑दयतामि॒ह त्वा॑ ॥४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पृ॒थि॒व्याः। पुरी॑षम्। अ॒सि॒। अप्सः॑। नाम॑। ताम्। त्वा॒। विश्वे॑। अ॒भि। गृ॒ण॒न्तु॒। दे॒वाः। स्तोम॑पृ॒ष्ठेति॒ स्तोम॑ऽपृष्ठा। घृ॒तव॒तीति॑ घृ॒तऽव॑ती। इ॒ह। सी॒द॒। प्र॒जाव॒दिति॑ प्रजाऽव॑त्। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे। द्रवि॑णा। आ। य॒ज॒स्व॒। अ॒श्विना॑। अ॒ध्व॒र्यूऽ इत्य॑ध्व॒र्यू। सा॒द॒य॒ता॒म्। इ॒ह। त्वा॒ ॥४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:14» मन्त्र:4


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! जो (स्तोमपृष्ठा) स्तुतियों को जानने की इच्छायुक्त तू (इह) इस गृहाश्रम में (पृथिव्याः) पृथिवी की (पुरीषम्) रक्षा (अप्सः) सुन्दररूप और (नाम) नाम और (घृतवती) बहुत घी आदि प्रशंसित पदार्थों से युक्त (असि) है, (ताम्) उस (त्वा) तुझको (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग (अभिगृणन्तु) सत्कार करें, (इह) इसी गृहाश्रम में (सीद) वर्त्तमान रह और जिस (त्वा) तुझ को (अध्वर्यू) अपने लिये रक्षणीय गृहाश्रमादि यज्ञ चाहनेवाले (अश्विना) व्यापक बुद्धि बढ़ाने और उपदेश करने हारे (इह) इस गृहाश्रम में (सादयताम्) स्थित करें सो तू (अस्मे) हमारे लिये (प्रजावत्) प्रशंसित सन्तान होने का साधन (द्रविणा) धन (यजस्व) दे ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्री गृहाश्रम की विद्या और क्रिया-कौशल में विदुषी हों, वे ही सब प्राणियों को सुख दे सकती हैं ॥४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(पृथिव्याः) (पुरीषम्) पालनम् (असि) (अप्सः) रूपम् (नाम) आख्याम् (ताम्) (त्वा) त्वाम् (विश्वे) सर्वे (अभि) (गृणन्तु) अर्चन्तु सत्कुर्वन्तु। गृणातीत्यर्चतिकर्मा० ॥ (निघं०३.१४) (देवाः) विद्वांसः (स्तोमपृष्ठा) स्तोमानां पृष्ठं ज्ञीप्सा यस्याः सा (घृतवती) प्रशस्तान्याज्यादीनि विद्यन्ते यस्याः सा (इह) गृहाश्रमे (सीद) वर्तस्व (प्रजावत्) प्रशस्ताः प्रजा भवन्ति यस्मात् तत् (अस्मे) अस्मभ्यम् (द्रविणा) धनानि। अत्र सुपां सुलुक् [अ०७.१.३९] इत्याकारादेशः (आ) समन्तात् (यजस्व) देहि (अश्विना) (अध्वर्यू) (सादयताम्) (इह) सत्ये व्यवहारे (त्वा) त्वाम्। [अयं मन्त्रः शत०८.२.१.७ व्याख्यातः] ॥४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! या स्तोमपृष्ठा त्वमिह पृथिव्याः पुरीषमप्सो नाम च घृतवत्यसि, तां त्वा विश्वे देवा अभिगृणन्त्विह सीद। त्वाऽध्वर्यू अश्विनेहासादयतां सा त्वमस्मे प्रजावद् द्रविणा यजस्व ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - याः स्त्रियो गृहाश्रमविद्याक्रियाकौशलयोर्विदुष्यः स्युस्ता एव सर्वेभ्यः सुखानि दातुमर्हन्ति ॥४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या स्त्रीच्या ठायी गृहस्थाश्रमातील विद्या व कर्मकौशल्य असते तीच सगळ्यांना सुख देऊ शकते.