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वसू॑नां भा॒गो᳖ऽसि रु॒द्राणा॒माधि॑पत्यं॒ चतु॑ष्पात् स्पृ॒तं च॑तुर्वि॒ꣳश स्तोम॑ऽ आ॒दि॒त्यानां॑ भा॒गो᳖ऽसि म॒रुता॒माधि॑पत्यं॒ गर्भा॑ स्पृ॒ताः पं॑चवि॒ꣳश स्तोमो॑ऽदि॑त्यै भा॒गो᳖ऽसि॒ पू॒ष्णऽ आधि॑पत्य॒मोज॑ स्पृ॒तं त्रि॑ण॒व स्तोमो॑ दे॒वस्य॑ सवि॒तुर्भा॒गो᳖ऽसि॒ बृह॒स्पते॒राधि॑पत्यꣳ स॒मीची॒र्दिश॑ स्पृ॒ताश्च॑तुष्टो॒म स्तोमः॑ ॥२५ ॥

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पद पाठ

वसू॑नाम्। भा॒गः। अ॒सि॒। रु॒द्राणा॑म्। आधि॑पत्य॒मित्याधि॑ऽपत्यम्। चतु॑ष्पात्। चतुः॑पा॒दिति॒ चतुः॑ऽपात्। स्पृ॒तम्। च॒तु॒र्वि॒ꣳश इति॑ चतुःऽवि॒ꣳशः। स्तोमः॑। आ॒दि॒त्याना॑म्। भा॒गः। अ॒सि॒। म॒रुता॑म्। आधि॑पत्य॒मित्याधि॑ऽपत्यम्। गर्भाः॑। स्पृ॒ताः। प॒ञ्च॒वि॒ꣳश इति॑ पञ्चऽवि॒ꣳशः। स्तोमः॑। अदि॑त्यै। भा॒गः। अ॒सि॒। पू॒ष्णः। आधि॑पत्य॒मित्याधि॑ऽपत्यम्। ओजः॑। स्पृ॒तम्। त्रि॒ण॒वः। त्रि॒न॒व इति॑ त्रिऽन॒वः। स्तोमः॑। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। भा॒गः। अ॒सि॒। बृह॒स्पतेः॑। आधि॑पत्य॒मित्याधि॑ऽपत्यम्। स॒मीचीः॑। दिशः॑। स्पृ॒ताः। च॒तु॒ष्टो॒मः। च॒तु॒स्तो॒म इति॑ चतुःऽस्तो॒मः। स्तोमः॑ ॥२५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:14» मन्त्र:25


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी पूर्वोक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! जो तू (वसूनाम्) अग्नि आदि आठ वा प्रथम कक्षा के विद्वानों का (भागः) सेवने योग्य (असि) है, सो (रुद्राणाम्) दश प्राण आदि ग्यारहवाँ जीव वा मध्यकक्षा के विद्वानों के (आधिपत्यम्) अधिकार को प्राप्त हो, जो (चतुर्विंशः) चौबीस प्रकार का (स्तोमः) स्तुतिकर्त्ता (आदित्यानाम्) बारह महीनों वा उत्तम कक्षा के विद्वानों के (भागः) सेवने योग्य (असि) है, सो तू (चतुष्पात्) गौ आदि पशुओं का (स्पृतम्) सेवन कर (मरुताम्) मनुष्य वा पशुओं के (आधिपत्यम्) अधिष्ठाता हो, जो तू (पञ्चविंशः) पच्चीस प्रकार का (स्तोमः) स्तुति के योग्य (अदित्यै) अखण्डित आकाश का (भागः) विभाग के तुल्य (असि) है, सो तू (पूष्णः) पुष्टिकारक पृथिवी से (स्पृतम्) सेवने योग्य (ओजः) बल को प्राप्त हो के (आधिपत्यम्) अधिकार को (प्राप्नुहि) प्राप्त हो, जो तू (त्रिणवः) सत्ताईस प्रकार का (स्तोमः) स्तुति के योग्य (देवस्य) सुखदाता (सवितुः) पिता का (भागः) विभाग (असि) है, सो तू (बृहस्पतेः) बड़ी वेदरूपी वाणी के पालक ईश्वर के दिये हुए (आधिपत्यम्) अधिकार को प्राप्त हो, जो तू (चतुष्टोमः) चार वेदों से कहने योग्य स्तुतिकर्त्ता है, सो तू (गर्भाः) गर्भ के तुल्य विद्या और शुभ गुणों से आच्छादित (स्पृताः) प्रीतिमान् सज्जन लोग जिन को जानते हैं, उन (समीचीः) सम्यक् प्राप्ति के साधन (स्पृताः) प्रीति का विषय (दिशः) पूर्व दिशाओं को जान ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - जो सुन्दर स्वभाव आदि गुणों का ग्रहण करते हैं, वे विद्वानों के प्यारे होके सब के अधिष्ठाता होते हैं और जो सब के ऊपर अधिकारी हों, वे मनुष्यों में पिता के समान वर्त्तें ॥२५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(वसूनाम्) अग्न्यादीनामादिमानां विदुषां वा (भागः) (असि) (रुद्राणाम्) प्राणादीनां मध्यमानां विदुषां वा (आधिपत्यम्) (चतुष्पात्) गवादिकम् (स्पृतम्) सेवितम् (चतुर्विंशः) चतुर्विंशतिधा (स्तोमः) स्तोता (आदित्यानाम्) मासानामुत्तमानां विदुषां वा (भागः) (असि) (मरुताम्) मनुष्याणां पशूनां वा। मरुत इति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.५) (आधिपत्यम्) (गर्भाः) गर्भ इव विद्याशुभगुणौरावृताः (स्पृताः) प्रीतिमन्तः (पञ्चविंशः) पञ्चविंशतिप्रकारः (स्तोमः) स्तोतव्यः (अदित्यै) प्रकाशस्य (भागः) (असि) (पूष्णः) पुष्टिकर्त्र्या भूमेः। पूषेति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (आधिपत्यम्) (ओजः) बलम् (स्पृतम्) सेवितम् (त्रिणवः) सप्तविंशतिधा (स्तोमः) स्तोतव्यः (देवस्य) सुखप्रदस्य (सवितुः) जनकस्य (भागः) (असि) (बृहस्पतेः) बृहत्या वेदवाचः पालकस्य (आधिपत्यम्) (समीचीः) याः सम्यगच्यन्ते (दिशः) (स्पृताः) (चतुष्टोमः) चतुर्भिर्वेदैः स्तूयते चतुःस्तोम (स्तोमः) स्तोता। [अयं मन्त्रः शत०८.४.२.७-१० व्याख्यातः] ॥२५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यस्त्वं वसूनां भागोऽसि, स त्वं रुद्राणामाधिपत्यं गच्छ। यश्चतुर्विंशस्तोम आदित्यानां भागोऽसि, स त्वं चतुष्पात्स्पृतं कुरु, मरुतामाधिपत्यं गच्छ। यस्त्वं पञ्चविंशस्तोमोऽदित्यै भागोऽसि, स त्वं पूष्ण ओजः स्पृतमाधिपत्यं प्राप्नुहि। यस्त्वं त्रिणवः स्तोमो देवस्य सवितुर्भागोऽसि, स त्वं बृहस्पतेराधिपत्यं याहि। यस्त्वं चतुष्टोमोऽसि, स त्वं गर्भाः स्पृता या जानन्ति ताः समीचीः स्पृता दिशो विजानीहि ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - ये सुशीलत्वादिगुणान् गृह्णन्ति ते विद्वत्प्रियाः सन्तः सर्वाधिष्ठातृत्वं प्राप्नुवन्ति। येऽधिपतयो भवेयुस्ते नृषु पितृवद्वर्त्तन्ताम् ॥२५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्यांचा स्वभाव उत्तम असतो ते विद्वानांना प्रिय असतात. ते सर्वांचे अधिष्ठाते असतात. जे वरिष्ठ अधिकारी असतात अशा लोकांनी सर्व माणसांशी पित्याप्रमाणे व्यवहार करावा.