मू॒र्द्धासि॒ राड् ध्रु॒वासि॑ ध॒रुणा॑ ध॒र्त्र्य᳖सि॒ धर॑णी। आयु॑षे त्वा॒ वर्च॑से त्वा कृ॒ष्यै त्वा॒ क्षेमा॑य त्वा ॥२१ ॥
मू॒र्द्धा। अ॒सि॒। राट्। ध्रु॒वा। अ॒सि॒। ध॒रुणा॑। ध॒र्त्री। अ॒सि॒। धर॑णी। आयु॑षे। त्वा॒। वर्च॑से। त्वा॒। कृ॒ष्यै। त्वा॒। क्षेमा॑य। त्वा॒ ॥२१ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
विदुषी स्त्री कैसी हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
किंप्रकारिकया विदुष्या भवितव्यमित्याह ॥
(मूर्द्धा) उत्कृष्टा (असि) (राट्) राजमाना (ध्रुवा) दृढा स्वकक्षायां गच्छन्त्यपि निश्चला (असि) (धरुणा) पुष्टिकर्त्री (धर्त्री) धारिका (असि) अस्ति (धरणी) आधारभूता (आयुषे) जीवनाय (त्वा) त्वाम् (वर्चसे) अन्नाय (त्वा) त्वाम् (कृष्यै) कृषिकर्मणे (त्वा) त्वाम् (क्षेमाय) रक्षायै (त्वा) त्वाम्। [अयं मन्त्रः शत०८.३.४.६ व्याख्यातः] ॥२१ ॥