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मू॒र्द्धासि॒ राड् ध्रु॒वासि॑ ध॒रुणा॑ ध॒र्त्र्य᳖सि॒ धर॑णी। आयु॑षे त्वा॒ वर्च॑से त्वा कृ॒ष्यै त्वा॒ क्षेमा॑य त्वा ॥२१ ॥

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पद पाठ

मू॒र्द्धा। अ॒सि॒। राट्। ध्रु॒वा। अ॒सि॒। ध॒रुणा॑। ध॒र्त्री। अ॒सि॒। धर॑णी। आयु॑षे। त्वा॒। वर्च॑से। त्वा॒। कृ॒ष्यै। त्वा॒। क्षेमा॑य। त्वा॒ ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:14» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विदुषी स्त्री कैसी हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! जो तू सूर्य्य के तुल्य (मूर्द्धा) उत्तम (असि) है, (राट्) प्रकाशमान निश्चल के समान (ध्रुवा) निश्चल शुद्ध (असि) है, (धरुणा) पुष्टि करने हारी (धरणी) आधाररूप पृथिवी के तुल्य (धर्त्री) धारण करने हारी (असि) है, उस (त्वा) तुझे (आयुषे) जीवन के लिये, उस (त्वा) तुझे (वर्चसे) अन्न के लिये, उस (त्वा) तुझे (कृष्यै) खेती होने के लिये और उस (त्वा) तुझ को (क्षेमाय) रक्षा होने के लिये मैं सब ओर से ग्रहण करता हूँ ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे स्थित उत्तमाङ्ग शिर से सब का जीवन, राज्य से लक्ष्मी, खेती से अन्न आदि पदार्थ और निवास से रक्षा होती है, सो यह सब का आधारभूत माता के तुल्य मान्य करने हारी पृथिवी है, वैसे ही विद्वान् स्त्री को होना चाहिये ॥२१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

किंप्रकारिकया विदुष्या भवितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(मूर्द्धा) उत्कृष्टा (असि) (राट्) राजमाना (ध्रुवा) दृढा स्वकक्षायां गच्छन्त्यपि निश्चला (असि) (धरुणा) पुष्टिकर्त्री (धर्त्री) धारिका (असि) अस्ति (धरणी) आधारभूता (आयुषे) जीवनाय (त्वा) त्वाम् (वर्चसे) अन्नाय (त्वा) त्वाम् (कृष्यै) कृषिकर्मणे (त्वा) त्वाम् (क्षेमाय) रक्षायै (त्वा) त्वाम्। [अयं मन्त्रः शत०८.३.४.६ व्याख्यातः] ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! या त्वं सूर्य्यवन्मूर्द्धासि, राडिव ध्रुवासि, धरुणा धरणीव धर्त्र्यसि, तामायुषे त्वा वर्चसे त्वा कृष्यै त्वा क्षेमाय त्वा त्वामहं परिगृह्णामि ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - यथोत्तमाङ्गेन स्थितेन शिरसा सर्वेषां जीवनं, राज्येन लक्ष्मीः, कृष्या अन्नादिकं, निवासेन रक्षणं जायते, सेयं सर्वेषामाधारभूता मातृवन्मान्यकर्त्री भूमिवर्त्तते, तथा सती विदुषी स्त्री भवेदिति ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्वात उत्तम अवयव म्हणजे मेंदू. त्यामुळे सर्वांचे जीवन बनते. लक्ष्मीमुळे राज्य टिकते. शेतीमुळे अन्न इत्यादी पदार्थ मिळतात व घरामुळे सर्वांचे रक्षण होते. पृथ्वी ही सर्वांचा आधार असलेल्या मातेसमान असते त्यासाठी विदुषी स्त्रीने त्याप्रमाणे (मातेसमान) तसे वागावे.