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मा छन्दः॑ प्र॒मा छन्दः॑ प्रति॒मा छन्दो॑ऽ अस्री॒वय॒श्छन्दः॑ प॒ङ्क्तिश्छन्द॑ऽ उ॒ष्णिक् छन्दो॑ बृह॒ती छन्दो॑ऽनु॒ष्टुप् छन्दो॑ वि॒राट् छन्दो॑ गाय॒त्री छन्द॑स्त्रि॒ष्टुप् छन्दो॒ जग॑ती॒ छन्दः॑ ॥१८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। छन्दः॑। प्र॒मेति॑ प्र॒ऽमा। छन्दः॑। प्र॒ति॒मेति॑ प्रति॒ऽमा। छन्दः॑। अ॒स्री॒वयः॑। छन्दः॑। प॒ङ्क्तिः। छन्दः॑। उ॒ष्णिक्। छन्दः॑। बृ॒ह॒ती। छन्दः॑। अ॒नु॒ष्टुप्। अ॒नु॒स्तुबित्य॑नु॒ऽस्तुप्। छन्दः॑। वि॒राडिति॑ वि॒ऽराट्। छन्दः॑। गा॒य॒त्री। छन्दः॑। त्रि॒ष्टुप्। त्रि॒स्तुबिति॑ त्रि॒ऽस्तुप्। छन्दः॑। जग॑ती। छन्दः॑ ॥१८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:14» मन्त्र:18


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्त्री-पुरुषों को कैसे विज्ञान बढ़ाना चाहिये? इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग (मा) परिमाण का हेतु (छन्दः) आनन्दकारक (प्रमा) प्रमाण का हेतु बुद्धि (छन्दः) बल (प्रतिमा) जिससे प्रतीति निश्चय की क्रिया हेतु (छन्दः) स्वतन्त्रता (अस्रीवयः) बल और कान्तिकारक अन्नादि पदार्थ (छन्दः) बलकारी विज्ञान (पङ्क्तिः) पाँच अवयवों से युक्त योग (छन्दः) प्रकाश (उष्णिक्) स्नेह (छन्दः) प्रकाश (बृहती) बड़ी प्रकृति (छन्दः) आश्रय (अनुष्टुप्) सुखों का आलम्बन (छन्दः) भोग (विराट्) विविध प्रकार की विद्याओं का प्रकाश (छन्दः) विज्ञान (गायत्री) गानेवाले का रक्षक ईश्वर (छन्दः) उस का बोध (त्रिष्टुप्) तीन सुखों का आश्रय (छन्दः) आनन्द और (जगती) जिस में सब जगत् चलता है, उस (छन्दः) पराक्रम को ग्रहण कर और जान के सब को सुखयुक्त करो ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य निश्चय के हेतु आनन्द आदि से साध्य, धर्मयुक्त कर्मों को सिद्ध करते हैं, वे सुखों से शोभायमान होते हैं ॥१८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्त्रीपुरुषैः कथं विज्ञानं वर्द्धनीयमित्याह ॥

अन्वय:

(मा) यया मीयते सा (छन्दः) आनन्दकरी (प्रमा) यया प्रमीयते सा प्रज्ञा (छन्दः) बलम् (प्रतिमा) प्रतिमीयते यया क्रियया सा (छन्दः) (अस्रीवयः) यदस्यति कामयते च तदस्रीवयोऽन्नादिकम् (छन्दः) बलकारि (पङ्क्तिः) पञ्चावयवो योगः (छन्दः) प्रकाशः (उष्णिक्) स्नेहनम् (छन्दः) (बृहती) महती प्रकृतीः (छन्दः) (अनुष्टुप्) सुखानामनुष्टम्भनम् (छन्दः) (विराट्) विविधविद्याप्रकाशनम् (छन्दः) (गायत्री) या गायन्तं त्रायते सा (छन्दः) (त्रिष्टुप्) यया त्रीणि सुखानि स्तोभति सा (छन्दः) (जगती) गच्छति सर्वं जगद्यस्यां सा (छन्दः)। [अयं मन्त्रः शत०८.३.३.१५ व्याख्यातः] ॥१८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! युष्माभिर्मा छन्दः प्रमा छन्दः प्रतिमा छन्दोऽस्रीवयश्छन्दः पङ्क्तिश्छन्द उष्णिक् छन्दो बृहती छन्दोऽनुष्टुप् छन्दो विराट् छन्दो गायत्री छन्दस्रिष्टुप् छन्दो जगती छन्दः स्वीकृत्य विज्ञाय च सुखयितव्यम् ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः प्रमादिभिः साध्यानि धर्म्याणि कर्माणि साध्नुवन्ति ते सुखालङ्कृता भवन्ति ॥१८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे निश्चयपूर्वक आनंदाने आपले साध्य पूर्ण करतात व धर्मयुक्त कर्म करतात ते सुख प्राप्त करून जगात शोभून दिसतात.