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ध्रु॒वक्षि॑तिर्ध्रु॒वयो॑निर्ध्रु॒वासि॑ ध्रु॒वं योनि॒मासी॑द साधु॒या। उख्य॑स्य के॒तुं प्र॑थ॒मं जु॑षा॒णाऽ अ॒श्विना॑ऽध्व॒र्यू सा॑दयतामि॒ह त्वा॑ ॥१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ध्रु॒वक्षि॑ति॒रिति॑ ध्रु॒वऽक्षि॑तिः। ध्रु॒वयो॑नि॒रिति॑ ध्रु॒वऽयो॑निः। ध्रु॒वा। अ॒सि॒। ध्रु॒वम्। योनि॑म्। आ। सी॒द॒। सा॒धु॒येति॑ साधु॒ऽया। उख्य॑स्य। के॒तुम्। प्र॒थ॒मम्। जु॒षा॒णा। अ॒श्विना॑। अ॒ध्व॒र्यूऽइत्य॑ध्व॒र्यू। सा॒द॒य॒ता॒म्। इ॒ह। त्वा॒ ॥१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:14» मन्त्र:1


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब चौदहवें अध्याय का आरम्भ है, इस के पहिले मन्त्र में स्त्रियों के लिये उपदेश किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! जो तू (साधुया) श्रेष्ठ धर्म के साथ (उख्यस्य) बटलोई में पकाये अन्न की सम्बन्धी और (प्रथमम्) विस्तारयुक्त (केतुम्) बुद्धि को (जुषाणा) प्रीति से सेवन करती हुई (ध्रुवक्षितिः) निश्चल वास करने और (ध्रुवयोनिः) निश्चल घर में रहनेवाली (ध्रुवा) दृढ़धर्म्म से युक्त (असि) है, सो तू (ध्रुवम्) निश्चल (योनिम्) घर में (आसीद) स्थिर हो (त्वा) तुझको (इह) इस गृहाश्रम में (अध्वर्यू) अपने लिये रक्षणीय गृहाश्रम आदि यज्ञ के चाहने हारे (अश्विना) सब विद्याओं में व्यापक अध्यापक और उपदेशक (सादयताम्) अच्छे प्रकार स्थापित करें ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - विदुषी पढ़ाने और उपदेश करने हारी स्त्रियों को योग्य है कि कुमारी कन्याओं को ब्रह्मचर्य अवस्था में गृहाश्रम और धर्म्मशिक्षा दे के इनको श्रेष्ठ करें ॥१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथादिमे मन्त्रे स्त्रीभ्य उपदेशमाह ॥

अन्वय:

(ध्रुवक्षितिः) ध्रुवा निश्चला क्षितिर्निवसतिर्जनपदो यस्याः सा (ध्रुवयोनिः) ध्रुवा योनिर्गृहं यस्याः सा (ध्रुवा) निश्चलधर्मा (असि) (ध्रुवम्) (योनिम्) गृहम् (आ) (सीद) (साधुया) साधुना धर्मेण सह (उख्यस्य) उखायां स्थाल्यां भवस्य पाकसमूहस्य (केतुम्) प्रज्ञाम् (प्रथमम्) विस्तीर्णम् (जुषाणा) प्रीत्या सेवमाना (अश्विना) व्याप्तसकलविद्यावध्यापकोपदेशकौ (अध्वर्यू) आत्मनोऽध्वरमहिंसनीयं गृहाश्रमादिकं यज्ञमिच्छू (सादयताम्) अवस्थापयतम् (इह) गृहाश्रमे (त्वा) त्वाम्। [अयं मन्त्रः शत०८.२.१.४ व्याख्यातः] ॥१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! या त्वं साधुयोख्यस्य प्रथमं केतुं जुषाणा ध्रुवक्षितिर्ध्रुवयोनिर्ध्रुवासि, सा त्वं ध्रुवं योनिमासीद। त्वा त्वामिहाध्वर्यू अश्विना सादयताम् ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - कुमारीणां ब्रह्मचर्याऽवस्थायामध्यापिकोपदेशिके विदुष्यौ गृहाश्रमधर्मशिक्षां कृत्वैताः साध्वीः सम्पादयेताम् ॥१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापन करणाऱ्या व उपदेश करणाऱ्या विदुषी स्रियांनी मुलींना ब्रह्मचर्यावस्थेत गृहस्थाश्रमाचे व धर्माचे शिक्षण देऊन श्रेष्ठ बनवावे.