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कृ॒णु॒ष्व पाजः॒ प्रसि॑तिं॒ न पृ॒थ्वीं या॒हि राजे॒वाम॑वाँ॒२ऽ इभे॑न। तृ॒ष्वीमनु॒ प्रसि॑तिं द्रूणा॒नोऽस्ता॑सि॒ विध्य॑ र॒क्षस॒स्तपि॑ष्ठैः ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कृ॒णु॒ष्व। पाजः॑। प्रसि॑ति॒मिति॒ प्रऽसि॑तिम्। न। पृ॒थ्वीम्। या॒हि। राजे॒वेति॒ राजा॑ऽ इव। अम॑वा॒नित्यम॑ऽवान्। इभे॑न। तृ॒ष्वीम्। अनु॑। प्रसि॑ति॒मिति॒ प्रऽसि॑तिम्। द्रू॒णा॒नः। अस्ता॑। अ॒सि॒। विध्य॑। र॒क्षसः॑। तपि॑ष्ठैः ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:9


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजपुरुषों को शत्रु कैसे बाँधने चाहियें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सेनापते ! आप (पाजः) बल को (कृणुष्व) कीजिये (प्रसितिम्) जाल के (न) समान (पृथ्वीम्) भूमि को (याहि) प्राप्त हूजिये, जिससे आप (अस्ता) फेंकनेवाले (असि) हैं, इससे (इभेन) हाथी के साथ (अमवान्) बहुत दूतोंवाले (राजेव) राजा के समान (तपिष्ठैः) अत्यन्त दुःखदायी शस्त्रों से (प्रसितिम्) फाँसी को सिद्ध कर (रक्षसः) शत्रुओं को (द्रूणानः) मारते हुए (तृष्वीम्) शीघ्र (अनु) सन्मुख होकर (विध्य) ताड़ना कीजिये ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। सेनापति को चाहिये कि राजा के समान पूर्ण बल से युक्त हो अनेक फाँसियों से शत्रुओं को बाँध उनको बाण आदि शस्त्रों से ताड़ना दे और बन्दीगृह में बन्द कर के श्रेष्ठ पुरुषों को पाले ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजपुरुषैः कथं शत्रवो बन्धनीया इत्याह ॥

अन्वय:

(कृणुष्व) कुरुष्व (पाजः) बलम्। पातेर्बले जुच् च ॥ (उणा०४.२१०) इत्यसुन् (प्रसितिम्) जालम्। प्रसितिः प्रसयनात् तन्तुर्वा जालं वा ॥ (निरु०६.१२) (न) इव (पृथ्वीम्) भूमिम् (याहि) प्राप्नुहि (राजेव) (अमवान्) बहवः सचिवा विद्यन्ते यस्य तद्वत् (इभेन) हस्तिना (तृष्वीम्) क्षिप्रगतिम्। तृष्विति क्षिप्रनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.१५) ततो वोतो गुणवचनात् [अष्टा०४.१.४४] इति ङीष् (अनु) (प्रसितिम्) बन्धनं जालम् (द्रूणानः) हिंसन् (अस्ता) प्रक्षेप्ता (असि) (विध्य) ताडय (रक्षसः) शत्रून् (तपिष्ठैः) अतिशयेन संतापकरैः शस्त्रैः। अयं मन्त्रः निरु०६.१२ व्याख्यातः। [अयं मन्त्रः शत०७.४.१.३३ व्याख्यातः] ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सेनापते ! त्वं पाजः कृणुष्व प्रसितिं न पृथ्वीं याहि। यतस्वमस्तासि तस्मादिभेनामवान् राजेव तपिष्ठैः प्रसितिं संसाध्य रक्षसश्च द्रूणानस्तृष्वीमनुविध्य ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। राजवत्सेनापतिः पूर्णं बलं संपाद्यानेकैः पाशैः शत्रून् बध्वा शरादिभिर्विध्वा कारागृहे संस्थाप्य श्रेष्ठान् पालयेत् ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. सेनापतीने राजाप्रमाणे पूर्ण बलवान बनून शत्रूंना फास घालून पकडावे. बाण इत्यादी शस्त्रांनी मारावे. तुरुंगात बंदिस्त करावे व श्रेष्ठ माणसांचे रक्षण करावे.