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ये वा॒मी रो॑च॒ने दि॒वो ये वा॒ सूर्य॑स्य र॒श्मिषु॑। येषा॑म॒प्सु सद॑स्कृ॒तं तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। वा॒। अ॒मीऽइत्य॒मी। रो॒च॒ने। दि॒वः। ये। वा॒। सूर्य्य॑स्य। र॒श्मिषु॑। येषा॑म्। अ॒प्स्वित्य॒प्सु। सदः॑। कृ॒तम्। तेभ्यः॑। स॒र्पेभ्यः॑। नमः॑ ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कण्टक और दुष्ट प्राणी कैसे हटाने चाहियें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ये) जो (अमी) वे परोक्ष में रहनेवाले (दिवः) बिजुली के (रोचने) प्रकाश में (वा) अथवा (ये) जो (सूर्य्यस्य) सूर्य्य की (रश्मिषु) किरणों में (वा) अथवा (येषाम्) जिनका (अप्सु) जलों में (सदः) स्थान (कृतम्) बना है, (तेभ्यः) उन (सर्पेभ्यः) दुष्ट प्राणियों को (नमः) वज्र से मारो ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जो जलों में, आकाश में, जो दुष्ट प्राणी वा सर्प रहते हैं, उन को शस्त्रों से निवृत्त करें ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कण्टकाः कथं बाधनीया इत्याह ॥

अन्वय:

(ये) (वा) (अमी) (रोचने) दीप्तौ (दिवः) विद्युतः (ये) (वा) (सूर्य्यस्य) (रश्मिषु) (येषाम्) (अप्सु) (सदः) सदनम् (कृतम्) निष्पन्नम् (तेभ्यः) (सर्पेभ्यः) दुष्टप्राणिभ्यः (नमः) वज्रम् ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! येऽमी दिवो रोचने ये वा सूर्य्यस्य रश्मिषु येषां वाप्सु सदस्कृतमस्ति, तेभ्यः सर्पेभ्यो नमो दत्त ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्ये जलेष्वन्तरिक्षे सर्पा निवसन्ति, ते वज्रप्रहारेण निवर्त्तनीयाः ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जलात किंवा आकाशात राहणारे जे दुष्ट प्राणी किंवा सर्प असतात त्यांना माणसांनी शस्त्रांनी नष्ट करावे.