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याऽइष॑वो यातु॒धाना॑नां॒ ये वा॒ वन॒स्पतीँ॒१ऽरनु॑। ये वा॑व॒टेषु॒ शेर॑ते॒ तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ॥७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याः। इष॑वः। या॒तु॒धाना॑ना॒मिति॑ यातु॒ऽधाना॑नाम्। ये। वा॒। वन॒स्पती॑न्। अनु॑। ये। वा॒। अ॒व॒टेषु॑। शेर॑ते। तेभ्यः॑। स॒र्पेभ्यः॑। नमः॑ ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:7


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कैसा होना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग (याः) जो (यातुधानानाम्) पराये पदार्थों को प्राप्त हो के धारण करनेवाले जनों की (इषवः) गति हैं (वा) अथवा (ये) जो (वनस्पतीन्) वट आदि वनस्पतियों के (अनु) आश्रित रहते हैं और (ये) जो (वा) अथवा (अवटेषु) गुप्तमार्गों में (शेरते) सोते हैं, (तेभ्यः) उन (सर्पेभ्यः) चञ्चल दुष्ट प्राणियों के लिये (नमः) वज्र चलाओ ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जो मार्गों और वनों में उचक्के दुष्ट प्राणी एकान्त में दिन के समय सोते हैं, उन डाकुओं और सर्पों को शस्त्र, ओषधि आदि से निवारण करें ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तैः कथं भवितव्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(याः) (इषवः) गतयः (यातुधानानाम्) ये यान्ति परपदार्थान् दधति तेषाम् (ये) (वा) (वनस्पतीन्) वटादीन् (अनु) (ये) (वा) (अवटेषु) अपरिभाषितेषु मार्गेषु (शेरते) (तेभ्यः) (सर्पेभ्यः) (नमः) वज्रम्। [अयं मन्त्रः शत०७.४.१.२९ व्याख्यातः] ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं या यातुधानानामिषवो ये वा वनस्पतीननुवर्त्तन्ते, ये वाऽवटेषु शेरते, तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः प्रक्षिपत ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्या ये मार्गेषु वनेषूत्कोचका दिवसे एकान्ते स्वपन्ति, तान् दस्यून्नागांश्च शस्त्रौषधादिना निवारयन्तु ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी मार्गात व वनात गुप्त व एकांतस्थळी झोपणाऱ्या (लपणाऱ्या) चोर व दुष्ट प्राण्यांना, तसेच डाकू व सर्पांना शस्त्रांनी किंवा औषधांनी मारावे.