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नमो॑ऽस्तु स॒र्पेभ्यो॒ ये के च॑ पृथि॒वीमनु॑। येऽ अ॒न्तरि॑क्षे॒ ये दि॒वि तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ॥६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। अ॒स्तु॒। स॒र्पेभ्यः॑। ये। के। च॒। पृ॒थि॒वीम्। अनु॑। ये। अ॒न्तरि॑क्षे। ये। दि॒वि। तेभ्यः॑। स॒र्पेभ्यः॑। नमः॑ ॥६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:6


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को संसार में कैसे वर्त्तना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (के) कोई इस जगत् में लोक-लोकान्तर और प्राणी हैं (तेभ्यः) उन (सर्पेभ्यः) लोकों के जीवों के लिये (नमः) अन्न (अस्तु) हो। (ये) जो (अन्तरिक्षे) आकाश में (ये) जो (दिवि) प्रकाशमान सूर्य्य आदि लोकों में (च) और (ये) जो (पृथिवीम्) भूमि के (अनु) ऊपर चलते हैं, उन (सर्पेभ्यः) प्राणियों के लिये (नमः) अन्न प्राप्त होवे ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जितने लोक दीख पड़ते हैं, और जो नहीं दीख पड़ते हैं, वे सब अपनी-अपनी कक्षा में नियम से स्थिर हुए आकाश मार्ग में घूमते हैं, उन सबों में जो प्राणी चलते हैं, उन के लिये अन्न भी ईश्वर ने रचा है कि जिससे इन सब का जीवन होता है, इस बात को तुम लोग जानो ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैरत्र कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम्। नम इत्यन्ननामसु पठितम् ॥ निघं०२.७ ॥ (अस्तु) (सर्पेभ्यः) ये सर्पन्ति गच्छन्ति ते लोकास्तेभ्यः। इमे वै लोकाः सर्पास्ते हानेन सर्वेण सर्पन्ति ॥ शत०७.३.१.२५ ॥ (ये) (के) (च) (पृथिवीम्) भूमिम् (अनु) (ये) (अन्तरिक्षे) आकाशे (ये) (दिवि) सूर्यादिलोके (तेभ्यः) (सर्पेभ्यः) प्राणिभ्यः (नमः) अन्नम्। [अयं मन्त्रः शत०७.४.१.२८ व्याख्यातः] ॥६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये के चात्र सर्पाः सन्ति तेभ्यः सर्पेभ्यो नमोऽस्तु। येऽन्तरिक्षे ये दिवि ये च पृथिवीमनुसर्पन्ति तेभ्यः सर्पेभ्यो नमोऽस्तु ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - यावन्त इमे लोका दृश्यन्ते ये च न दृश्यन्ते, ते सर्वे स्वस्वकक्षायामीश्वरेण नियताः सन्त आकाशे भ्रमन्ति। तेषु सर्वेषु लोकेषु ये प्राणिनश्चलन्ति तदर्थमन्नमपीश्वरेण रचितम्, यत एतेषां जीवनं भवतीति यूयं विजानीत ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जितके दृश्य व अदृश्य गोल आकाश मार्गात आपापल्या कक्षेत नियमाने फिरत असतात त्या सर्व गोलांतील प्राण्यांसाठी ईश्वराने अन्न निर्माण केलेले आहे व त्यावर सर्वांचे जीवन अवलंबून आहे. हे तुम्ही जाणा.