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त्वं य॑विष्ठ दा॒शुषो॒ नॄः पा॑हि शृणु॒धी गिरः॑। रक्षा॑ तो॒कमु॒त त्मना॑ ॥५२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। य॒वि॒ष्ठ॒। दा॒शुषः॑। नॄन्। पा॒हि॒। शृ॒णु॒धि। गिरः॑। रक्ष॑। तो॒कम्। उ॒त। त्मना॑ ॥५२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:52


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कैसे पशुओं की रक्षा करना और हनना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (यविष्ठ) अत्यन्त युवा ! (त्वम्) तू रक्षा किये हुए इन पशुओं से (दाशुषः) सुखदाता (नॄन्) धर्मरक्षक मनुष्यों की (पाहि) रक्षा कर, इन (गिरः) सत्य वाणियों को (शृणुधि) सुन और (त्मना) अपने आत्मा से मनुष्य (उत्) और पशुओं के (तोकम्) बच्चों की (रक्ष) रक्षा कर ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य मनुष्यादि प्राणियों के रक्षक पशुओं को बढ़ाते हैं और कृपामय उपदेशों को सुनते-सुनाते हैं, वे आन्तर्य सुख को प्राप्त होते हैं ॥५२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कीदृशा रक्ष्या हिंसनीयाश्चेत्याह ॥

अन्वय:

(त्वम्) (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (दाशुषः) सुखदातॄन् (नॄन्) धर्मनेतॄन् मनुष्यान्। अत्र नॄन् पे [अष्टा०८.३.१०] इति रुरादेशः पूर्वस्यानुनासिकत्वं च (पाहि) (शृणुधि) अत्र हेर्ध्यादेशः ‘अन्येषामपि० [अष्टा०६.३.१३७] इति दीर्घः (गिरः) सत्या वाचः (रक्ष) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अष्टा०६.३.१३५] इति दीर्घः (तोकम्) अपत्यम् (उत) अपि (त्मना) आत्मना। [अयं मन्त्रः शत०७.५.२.३९ व्याख्यातः] ॥५२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे यविष्ठ ! त्वं संरक्षितैरेतैः पशुभिर्दाशुषो नॄन् पाहि। इमा गिरः शृणुधि, त्मना मनुष्याणामुत पशूनां तोकं रक्ष ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या मनुष्यादिरक्षकान् पशून् वर्धयन्ते, करुणामयानुपदेशान् शृण्वन्ति श्रावयन्ति, त आत्मजं सुखं लभन्ते ॥५२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे मनुष्य इत्यादी प्राण्यांचे रक्षक, पशूंचे आश्रयदाते असतात व सत्योपदेश ऐकतात, ऐकवितात त्यांना आंतरिक सुख प्राप्त होते.