इ॒षे रा॒ये र॑मस्व॒ सह॑से द्यु॒म्नऽ ऊ॒र्जेऽ अप॑त्याय। स॒म्राड॑सि स्व॒राड॑सि सारस्व॒तौ त्वोत्सौ॒ प्राव॑ताम् ॥३५ ॥
इ॒षे। रा॒ये। र॒म॒स्व॒। सह॑से। द्यु॒म्ने। ऊ॒र्जे। अप॑त्याय। स॒म्राडिति॑ स॒म्ऽराट्। अ॒सि॒। स्व॒राडिति॑ स्व॒ऽराट्। अ॒सि॒। सा॒र॒स्व॒तौ। त्वा॒। उत्सौ॑। प्र। अ॒व॒ता॒म् ॥३५ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब स्त्री-पुरुष विवाह करके कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ जायापती उद्वाहं कृत्वा कथं वर्तेयातामित्याह ॥
(इषे) विज्ञानाय (राये) श्रिये (रमस्व) क्रीडस्व (सहसे) बलाय (द्युम्ने) यशसेऽन्नाय वा। द्युम्नं द्योततेर्यशो वाऽन्नं वा। (निरु०५.५) (ऊर्जे) पराक्रमाय (अपत्याय) सन्तानाय (सम्राट्) यः सम्यग् राजते सः (असि) (स्वराट्) या स्वयं राजते सा (असि) (सारस्वतौ) सरस्वत्यां वेदवाचि कुशलावुपदेशकोपदेष्ट्र्यौ (त्वा) त्वाम् (उत्सौ) कूपोदकमिवार्द्रीभूतौ (प्र) (अवताम्) रक्षणादिकं कुरुताम्। [अयं मन्त्रः शत०७.५.१.३१ व्याख्यातः] ॥३५ ॥