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विष्णोः॒ कर्मा॑णि पश्यत॒ यतो॑ व्र॒तानि॑ पस्प॒शे। इन्द्र॑स्य॒ युज्यः॒ सखा॑ ॥३३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विष्णोः॑। कर्मा॑णि। प॒श्य॒त॒। यतः॑। व्र॒तानि॑। प॒स्प॒शे। इन्द्र॑स्य। युज्यः॑। सखा॑ ॥३३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:33


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वानों के तुल्य अन्य मनुष्यों को आचरण करना चाहिये, इसी विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्य की इच्छा करनेहारे जीव का (युज्यः) उपासना करने योग्य (सखा) मित्र के समान वर्त्तमान है, (यतः) जिसके प्रताप से यह जीव (विष्णोः) व्यापक ईश्वर के (कर्माणि) जगत् की रचना, पालन, प्रलय करने और न्याय आदि कर्मों और (व्रतानि) सत्यभाषणादि नियमों को (पस्पशे) स्पर्श करता है, इसलिये इस परमात्मा के इन कर्मों और व्रतों को तुम लोग भी (पश्यत) देखो, धारण करो ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे परमेश्वर का मित्र, उपासक, धर्मात्मा, विद्वान् पुरुष परमात्मा के गुण, कर्म और स्वभावों के अनुसार सृष्टि के क्रमों के अनुकूल आचरण करे और जाने, वैसे ही अन्य मनुष्य करें और जानें ॥३३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्वदितरैर्जनैराचरणीयमित्याह ॥

अन्वय:

(विष्णोः) व्यापकेश्वरस्य (कर्माणि) जगत्सृष्टिपालनप्रलयकरणन्यायादीनि (पश्यत) संप्रेक्षध्वम् (यतः) (व्रतानि) नियतानि सत्यभाषणादीनि (पस्पशे) स्पृशति (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यमिच्छुकस्य जीवस्य (युज्यः) उपयुक्तानन्दप्रदः (सखा) मित्र इव वर्त्तमानः। [अयं मन्त्रः शत०७.५.१.२५ व्याख्यातः] ॥३३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! य इन्द्रस्य जीवस्य युज्यः सखास्ति, यतोऽयं विष्णोः कर्माणि व्रतानि च पस्पशे, तस्मादेतस्यैतानि यूयमपि पश्यत ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - यथा परमेश्वरस्य सुहृदुपासको धार्मिको विद्वानस्य गुणकर्मस्वभावक्रमानुसाराणि सृष्टिक्रमाणि कुर्याज्जानीयात्, तथैवेतरे मनुष्याः कुर्युर्जानीयुश्च ॥३३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्यप्रमाणे परमेश्वराला मित्र मानणारा, धर्मात्मा उपासक विद्वान पुरुष परमेश्वराचा गुण, कर्म, स्वभाव व सृष्टिक्रम जाणून त्याप्रमाणे आचरण करतो तसे इतर माणसांनीही वागावे.