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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे वसन्त ऋतु में (नक्तम्) रात्रि (मधु) कोमलता से युक्त (उत) और (उषसः) प्रातःकाल से लेकर दिन मधुर (पार्थिवम्) पृथिवी का (रजः) द्व्यणुक वा त्रसरेणु आदि (मधुमत्) मधुर गुणों से युक्त और (द्यौः) प्रकाश भी (मधु) मधुरतायुक्त (पिता) रक्षा करनेहारा (नः) हमारे लिये (अस्तु) होवे, वैसे युक्ति से उस वसन्त ऋतु का सेवन तुम भी किया करो ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जब वसन्त ऋतु आता है, तब पक्षी भी कोमल मधुर-मधुर शब्द बोलते और अन्य सब प्राणी आनन्दित होते हैं ॥२८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स एव विषय उपदिश्यते ॥
अन्वय:
(मधु) (नक्तम्) रात्रिः (उत) अपि (उषसः) प्रातर्मुखानि दिनानि (मधुमत्) मधुरगुणयुक्तम् (पार्थिवम्) पृथिव्या विकारः (रजः) द्व्यणुकादिरेणुः (मधु) (द्यौः) प्रकाशः (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् (पिता) पालकः ॥२८ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वसन्ते नक्तं मधूताप्युषसो मधु पार्थिवं रजो मधुमद् द्यौर्मधु पिता नोऽस्तु, तथा यूयमप्येतं युक्त्या सेवध्वम् ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। प्राप्ते वसन्ते पक्षिणोऽपि मधुरं स्वनन्ति, हर्षिताः प्राणिनश्च जायन्ते ॥२८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा वसंत ऋतू येतो तेव्हा पक्षीही कोमल व मधुर ध्वनी काढून गाऊ लागतात व इतर प्राणीही आनंदित होतात.