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अ॒पां पृ॒ष्ठम॑सि॒ योनि॑र॒ग्नेः स॑मु॒द्रम॒भितः॒ पिन्व॑मानम्। वर्ध॑मानो म॒हाँ२ऽआ च॒ पुष्क॑रे दि॒वो मात्र॑या वरि॒म्णा प्र॑थस्व ॥२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒पाम्। पृ॒ष्ठम्। अ॒सि॒। योनिः॑। अ॒ग्नेः। स॒मु॒द्रम्। अ॒भितः॑। पिन्व॑मानम्। वर्ध॑मानः। म॒हान्। आ। च॒। पुष्क॑रे। दि॒वः। मात्र॑या। व॒रि॒म्णा। प्र॒थ॒स्व॒ ॥२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:2


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब परमेश्वर की उपासना का विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् पुरुष ! जो तू (अभितः) सब ओर से (अपाम्) सर्वत्र व्यापक परमेश्वर आकाश दिशा बिजुली और प्राणों वा जलों के (पृष्ठम्) अधिकरण (समुद्रम्) आकाश के समान सागर (पिन्वमानम्) सींचते हुए समुद्र को (अग्नेः) बिजुली आदि अग्नि के (योनिः) कारण (दिवः) प्रकाशित पदार्थों का (मात्रया) निर्माण करनेहारी बुद्धि से (पुष्करे) हृदयरूप अन्तरिक्ष में (वर्धमानः) उन्नति को प्राप्त हुए (च) और (महान्) सब श्रेष्ठ वा सब के पूज्य (असि) हो, सो आप हमारे लिये (वरिम्णा) व्यापकशक्ति से (आ, प्रथस्व) प्रसिद्ध हूजिये ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को जिस सत्, चित् और आनन्दस्वरूप, सब जगत् का रचने हारा, सर्वत्र व्यापक, सब से उत्तम और सर्वशक्तिमान् ब्रह्म की उपासना से सम्पूर्ण विद्यादि अनन्त गुण प्राप्त होते हैं, उसका सेवन क्यों न करना चाहिये ॥२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ परमेश्वरोपासनाविषयमाह ॥

अन्वय:

(अपाम्) व्यापकानां प्राणानां जलानां वा (पृष्ठम्) अधिकरणम् (असि) (योनिः) कारणम् (अग्नेः) विद्युदादेः (समुद्रम्) अन्तरिक्षमिव सागरम् (अभितः) सर्वतः (पिन्वमानम्) सिञ्चमानम् (वर्धमानः) सर्वथोत्कृष्टः (महान्) सर्वेभ्यो वरीयान् सर्वैः पूज्यश्च (आ) (च) (पुष्करे) अन्तरिक्षे। पुष्करमित्यन्तरिक्षनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.३) (दिवः) द्योतमानस्य (मात्रया) यया सर्वं मिमीते (वरिम्णा) अतिशयेनोरुर्बहुस्तेन व्यापकत्वेन (प्रथस्व) प्रख्यातो भव। [अयं मन्त्रः शत०७.४.९.१ व्याख्यातः] ॥२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यस्त्वमभितोऽपां पृष्ठं समुद्रं पिन्वमानमग्नेर्योनिर्दिवो मात्रया पुष्करे वर्धमानो महाँश्चासि सोऽस्मासु वरिम्णाऽऽप्रथस्व ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यत् सच्चिदानन्दस्वरूपमखिलस्य जगतो निर्मातृ सर्वत्राभिव्याप्तं सर्वेभ्यो वरं सर्वशक्तिमद् ब्रह्मैवोपास्य सकलविद्याः प्राप्यन्ते, तत् कथं न सेवितव्यं स्यात् ॥२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सत् चित् आनंदस्वरूप, सृष्टिकर्ता, सर्वव्यापक, सर्वश्रेष्ठ, सर्वशक्तिमान, ब्रह्माची उपासना करून माणसांना जर संपूर्ण विद्या इत्यादी अनंत गुण प्राप्त होतात, तर त्याची भक्ती का करू नये?