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भुवो॑ य॒ज्ञस्य॒ रज॑सश्च ने॒ता यत्रा॑ नि॒युद्भिः॒ सच॑से शि॒वाभिः॑। दि॒वि मू॒र्द्धानं॑ दधिषे स्व॒र्षां जि॒ह्वाम॑ग्ने चकृषे हव्य॒वाह॑म् ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भुवः॑। य॒ज्ञस्य॑। रज॑सः। च॒। ने॒ता। यत्र॑। नि॒युद्भि॒रिति॑ नि॒युत्ऽभिः॑। सच॑से। शि॒वाभिः॑। दि॒वि। मू॒र्द्धान॑म्। द॒धि॒षे॒। स्व॒र्षाम्। स्वः॒सामिति॑ स्वः॒ऽसाम्। जि॒ह्वाम्। अ॒ग्ने॒। च॒कृ॒षे॒। ह॒व्य॒वाह॒मिति॑ हव्य॒ऽवाह॑म् ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् पुरुष ! (यत्र) जिस राज्य में आप जैसे (नियुद्भिः) वेग आदि गुणों के साथ वायु (रजसः) लोकों वा ऐश्वर्य्य का (नेता) चलाने हारा (दिवि) न्याय के प्रकाश में (मूर्द्धानम्) शिर को धारण करता है, वैसे (यत्र) जहाँ (शिवाभिः) कल्याणकारक नीतियों के साथ (भुवः) अपनी पृथिवी के (यज्ञस्य) राजधर्म्म के पालन करनेहारे होके (सचसे) संयुक्त होता, अच्छे पुरुषों से राज्य को (दधिषे) धारण और (हव्यवाहम्) देने योग्य विद्वानों की प्राप्ति का हेतु (स्वर्षाम्) सुखों का सेवन करानेहारी (जिह्वाम्) अच्छे विषयों की ग्राहक वाणी को (चकृषे) करते हो, वहाँ सब सुख बढ़ते हैं, यह निश्चित जानिये ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - जिस राज्य में राजा आदि सब राजपुरुष मङ्गलाचरण करनेहारे धर्मात्मा होके धर्मानुकूल प्रजाओं का पालन करें, वहाँ विद्या और अच्छी शिक्षा से होनेवाले सुख क्यों न बढ़ें ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

(भुवः) पृथिव्याः (यज्ञस्य) राजधर्मस्य (रजसः) लोकस्यैश्वर्यस्य वा (च) पश्वादीनाम् (नेता) नयनकर्त्ता (यत्र) राज्ये। अत्र निपातस्य च [अष्टा०६.३.१३६] इति दीर्घः (नियुद्भिः) वायोर्वेगादिगुणैः सह (सचसे) समवैषि (शिवाभिः) कल्याणकारिकाभिर्नीतिभिः (दिवि) न्यायप्रकाशे (मूर्द्धानम्) शिरः (दधिषे) धरसि (स्वर्षाम्) स्वः सुखानि सनन्ति भजन्ति यया ताम् (जिह्वाम्) जोहवीति यया तां वाचम् (अग्ने) विद्वन् (चकृषे) करोषि (हव्यवाहम्) हव्यानि होतुं दातुमर्हाणि प्रज्ञानानि यया ताम्। [अयं मन्त्रः शत०७.४.१.४२ व्याख्यातः] ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने विद्वन् ! यथाऽग्निर्नियुद्भिः सह वायू रजसो नेता सन् दिवि मूर्द्धानं धरति, तथा यत्र शिवाभिः सह भुवो यज्ञस्य सचसे राज्यं दधिषे, हव्यवाहं स्वर्षां जिह्वाञ्चकृषे, तत्र सर्वाणि सुखानि वर्द्धन्त इति विजानीहि ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - यस्मिन् राज्ये राजादयः सर्वे धार्मिका मङ्गलचारिणो धर्मेण प्रजाः पालयेयुस्तत्र विद्यासुशिक्षाजानि सुखानि कुतो न वर्द्धेरन् ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या राज्यात राजा इत्यादी सर्व राजपुरुष कल्याण करणारे धर्मात्मा असून धर्मानुकूल वागून प्रजेचे पालन करतात तेथे विद्या व उत्तम शिक्षणाने सुख वाढले तर त्यात नवल कसले?