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अ॒ग्निर्मू॒र्द्धा दि॒वः क॒कुत्पतिः॑ पृथि॒व्याऽ अ॒यम्। अ॒पा रेता॑सि जिन्वति। इन्द्र॑स्य॒ त्वौज॑सा सादयामि ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निः। मू॒र्द्धा। दि॒वः। क॒कुत्। पतिः॑। पृ॒थि॒व्याः। अ॒यम्। अ॒पाम्। रेता॑सि। जि॒न्व॒ति॒। इन्द्र॑स्य। त्वा॒। ओज॑सा। सा॒द॒या॒मि॒ ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजपुरुष कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जैसे (अयम्) यह (अग्निः) सूर्य्य (दिवः) प्रकाशयुक्त आकाश के बीच और (पृथिव्याः) भूमि का (मूर्द्धा) सब प्राणियों के शिर के समान उत्तम (ककुत्) सब से बड़ा (पतिः) सब पदार्थों का रक्षक (अपाम्) जलों के (रेतांसि) सारों से प्राणियों को (जिन्वति) तृप्त करता है, वैसे आप भी हूजिये। मैं (त्वा) आप को (इन्द्रस्य) सूर्य्य के (ओजसा) पराक्रम के साथ राज्य के लिये (सादयामि) स्थापन करता हूँ ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य सूर्य्य के समान गुण, कर्म्म और स्वभाववाला, न्याय से प्रजा के पालन में तत्पर, धर्मात्मा, विद्वान् हो, उसको राज्याधिकारी सब लोग मानें ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

(अग्निः) सूर्य्यः (मूर्द्धा) सर्वेषां शिर इव (दिवः) प्रकाशयुक्तस्याकाशस्य मध्ये (ककुत्) महान्। ककुह इति महन्नामसु पठितम् ॥ (निघं०३.३) अस्यान्त्यलोपो वर्णव्यत्ययेन हस्य दः (पतिः) पालकः (पृथिव्याः) भूमेः (अयम्) (अपाम्) जलानाम् (रेतांसि) वीर्य्याणि (जिन्वति) प्रीणाति तर्पयति (इन्द्रस्य) सूर्यस्य (त्वा) त्वाम् (ओजसा) पराक्रमेण (सादयामि)। [अयं मन्त्रः शत०७.४.१.४१ व्याख्यातः] ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! यथाऽयमग्निर्दिवः पृथिव्या मूर्द्धा ककुत्पतिरपां रेतांसि जिन्वति, तथा त्वं भव। अहं त्वा त्वामिन्द्रस्यौजसा सह राज्याय सादयामि ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो मनुष्यः सूर्यवद् गुणकर्मस्वभावो न्यायेन प्रजापालनतत्परो धार्मिको विद्वान् भवेत् तं राजत्वेन सर्वे मनुष्याः स्वीकुर्य्युः ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या माणसाचे गुण, कर्म, स्वभाव सूर्याप्रमाणे असून जो न्यायाने प्रजेचे पालन करण्यास तत्पर, धर्मात्मा व विद्वान असेल त्याला सर्व लोकांनी राज्याधिकारी मानावे.