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ना॒श॒यि॒त्री ब॒लास॒स्यार्श॑सऽउप॒चिता॑मसि। अथो॑ श॒तस्य॒ यक्ष्मा॑णां पाका॒रोर॑सि॒ नाश॑नी ॥९७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ना॒श॒यि॒त्री। बलास॑स्य। अर्श॑सः। उ॒प॒चिता॒मित्यु॑प॒ऽचिता॑म्। अ॒सि॒। अथोऽइत्यथो॑। श॒तस्य॑। यक्ष्मा॑णाम्। पा॒का॒रोरिति॑ पाकऽअ॒रोः। अ॒सि॒। नाश॑नी ॥९७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:97


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

जितने रोग हैं उतनी ओषधि हैं, उन का सेवन करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वैद्य लोगो ! जो (बलासस्य) प्रवृद्ध हुए कफ की (अर्शसः) गुदेन्द्रिय की व्याधि वा (उपचिताम्) अन्य बढ़े हुए रोगों की (नाशयित्री) नाश करने हारी (असि) ओषधि है, (अथो) और जो (शतस्य) असंख्यात (यक्ष्माणाम्) राजरोगों अर्थात् भगन्दरादि और (पाकारोः) मुखरोगों और मर्मों का छेदन करनेहारे शूल की (नाशनी) निवारण करने हारी (असि) है, उस ओषधि को तुम लोग जानो ॥९७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को ऐसा जानना चाहिये कि जितने रोग हैं, उतनी ही उनकी नाश करनेहारी ओषधि भी हैं। इन ओषधियों को नहीं जाननेहारे पुरुष रोगों से पीडि़त होते हैं। जो रोगों की ओषधि जानें, तो उन रोगों की निवृत्ति करके निरन्तर सुखी होवें ॥९७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

रोगपरिमाणा ओषधयः सन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(नाशयित्री) (बलासस्य) आविर्भूतकफस्य (अर्शसः) मूलेन्द्रियव्याधेः (उपचिताम्) अन्येषां वर्धमानानां रोगाणाम् (असि) अस्ति (अथो) (शतस्य) अनेकेषाम् (यक्ष्माणाम्) महारोगाणाम् (पाकारोः) मुखादिपाकस्यारोर्मर्मच्छिदः शूलस्य च (असि) अस्ति, अत्रोभयत्र व्यत्ययः (नाशनी) निवारयितुं शीला ॥९७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वैद्याः ! या बलासस्यार्शस उपचितां नाशयित्र्यसि, अथो शतस्य यक्ष्माणां पाकारोर्नाशन्यसि, तामोषधिं यूयं विजानीत ॥९७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरेवं विज्ञेयं यावन्तो रोगाः सन्ति, तावत्य एव तन्निवारिका ओषधयोऽपि वर्त्तन्ते। एतासां विज्ञानेन रहिताः प्राणिनो रोगैः पच्यन्ते। यदि रोगाणामोषधीर्जानीयुस्तर्हि तेषां निवारणात् सततं सुखिनः स्युरिति ॥९७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी हे जाणले पाहिजे, की जितके रोग आहेत तितका त्यांचा नाश करणारे औषधही आहे. हे औषध जे जाणत नाहीत ते पुरुष रोगांनी पीडित होतात व जे पुरुष रोगांचे औषध जाणतात ते रोगांचा नाश करून सतत सुखी होतात.