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याऽओष॑धीः॒ सोम॑राज्ञीर्ब॒ह्वीः श॒तवि॑चक्षणाः। तासा॑मसि॒ त्वमु॑त्त॒मारं॒ कामा॑य॒ शꣳ हृ॒दे ॥९२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। ओष॑धीः। सोम॑राज्ञी॒रिति॒ सोम॑ऽराज्ञीः। ब॒ह्वीः। श॒तवि॑चक्षणा॒ इति॑ श॒तऽवि॑ऽचक्षणाः। तासा॑म्। अ॒सि॒। त्वम्। उ॒त्त॒मेत्यु॑त्ऽत॒मा। अर॑म्। कामा॑य। शम्। हृदे ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:92


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्त्री लोग अवश्य ओषधिविद्या ग्रहण करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! जिससे (त्वम्) तू (याः) जो (शतविचक्षणाः) असंख्यात शुभगुणों से युक्त (बह्वीः) बहुत (सोमराज्ञीः) सोम जिनमें राजा अर्थात् सर्वोत्तम (ओषधीः) ओषधि हैं, (तासाम्) उन के विषय में (उत्तमा) उत्तम विदुषी (असि) है, इससे (शम्) कल्याणकारिणी (हृदे) हृदय के लिये (अरम्) समर्थ (कामाय) इच्छासिद्धि के लिये योग्य होती है, हमारे लिये उन का उपदेश कर ॥९२ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्रियों को चाहिये कि ओषधिविद्या का ग्रहण अवश्य करें, क्योंकि इसके विना पूर्ण कामना सुख प्राप्ति और रोगों की निवृत्ति कभी नहीं हो सकती ॥९२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्त्रीभिरवश्यमोषधिविद्या ग्राह्या इत्याह ॥

अन्वय:

(याः) (ओषधीः) (सोमराज्ञीः) सोमो राजा यासां ताः (बह्वीः) (शतविचक्षणाः) शतमसंख्या विचक्षणा गुणा यासु ताः (तासाम्) (असि) (त्वम्) (उत्तमा) (अरम्) अलम् (कामाय) इच्छासिद्धये (शम्) कल्याणकारिणी (हृदे) हृदयाय ॥९२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! यतस्त्वं याः शतविचक्षणा बह्वीः सोमराज्ञीरोषधीः सन्ति, तासामुत्तमा विदुष्यसि, तस्माच्छं हृदेऽरं कामाय भवितुमर्हसि ॥९२ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्रीभिरवश्यमोषधिविद्या ग्राह्या नैतामन्तरा पूर्णं कामसुखं लब्धुं शक्यम्, रोगान्निवर्त्तयितुं च ॥९२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - स्त्रियांनी अवश्य औषधांची विद्या शिकावी. कारण त्याशिवाय पूर्णकामना, सुखप्राप्ती व रोगांचा नाश कधीही होऊ शकत नाही.