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                              हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर पढ़ानेहारे का कर्त्तव्य अगले मन्त्र में कहा है ॥
                   पदार्थान्वयभाषाः -  हे (अग्ने) अग्नि के समान तेजस्वी अध्यापक विद्वान् जन ! आप (नः) हम लोगों को (अंहसः) पापों से (पुनः) बार-बार (निवर्त्तस्व) बचाइये, (पुनः) फिर हम लोगों की (पाहि) रक्षा कीजिये, और (पुनः) फिर (इषा) इच्छा तथा (आयुषा) अन्न से (ऊर्जा) पराक्रमयुक्त कर्मों को प्राप्त कीजिये ॥९ ॥              
                              
                
                                
                    भावार्थभाषाः -  विद्वान् लोगों को चाहिये कि सब उपदेश के योग्य मनुष्यों को पापों से निरन्तर हटा के शरीर और आत्मा के बल से युक्त करें और आप भी पापों से बच के परम पुरुषार्थी होवें ॥९ ॥                
                                
                
                                
                                  
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                              संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनरध्यापककृत्यमाह ॥
                  अन्वय:  
              
                                          (पुनः) (ऊर्जा) पराक्रमयुक्तानि कर्माणि (नि) (वर्त्तस्व) (पुनः) (अग्ने) विद्वन् ! (इषा) इच्छया (आयुषा) अन्नेन (पुनः) (नः) अस्मान् (पाहि) रक्ष (अंहसः) पापात्। [अयं मन्त्रः शत०६.७.३.६ व्याख्यातः] ॥९ ॥
                   पदार्थान्वयभाषाः -  हे अग्ने ! त्वं नोऽस्मानंहसः पुनर्निवर्त्तस्व, पुनरस्मान् पाहि, पुनरिषाऽऽयुषोर्जा प्रापय ॥९ ॥              
                              
                
                                
                    भावार्थभाषाः -  विद्वांसः सर्वानुपदेश्यान् मनुष्यान् पापात् सततं निवर्त्य शरीरात्मबलयुक्तान् सम्पादयन्तु, स्वयं च पापान्निवृत्ताः परमपुरुषार्थिनः स्युः ॥९ ॥                
                                
                
                                
                                  
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                              मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
                    भावार्थभाषाः -  विद्वान लोकांनी उपदेश करून सर्वांना पापापासून सदैव परावृत्त करावे. सर्वांची शरीरे व आत्मे बलवान करावेत. स्वतःही पापांपासून दूर राहून अत्यंत पुरुषार्थी बनावे.                 
                                
                
                                
                                  
              
                  