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याः फ॒लिनी॒र्याऽअ॑फ॒लाऽअ॑पु॒ष्पा याश्च॑ पु॒ष्पिणीः॑। बृह॒स्पति॑प्रसूता॒स्ता नो॑ मुञ्च॒न्त्वꣳह॑सः ॥८९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याः। फ॒लिनीः॑। याः। अ॒फ॒लाः अ॒पु॒ष्पाः। याः। च॒। पु॒ष्पिणीः॑। बृह॒स्पति॑प्रसूता॒ इति॒ बृह॒स्पति॑ऽप्रसूताः। ताः। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु। अꣳह॑सः ॥८९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:89


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

रोगों के निवृत्त होने के लिये ही ओषधी ईश्वर ने रची है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (याः) जो (फलिनीः) बहुत फलों से युक्त (याः) जो (अफलाः) फलों से रहित (याः) जो (अपुष्पाः) फूलों से रहित (च) और जो (पुष्पिणीः) बहुत फूलोंवाली (बृहस्पतिप्रसूताः) वेदवाणी के स्वामी ईश्वर के द्वारा उत्पन्न की हुई औषधियाँ (नः) हमको (अंहसः) दुःखदायी रोग से जैसे (मुञ्चन्तु) छुड़ावें (ताः) वे तुम लोगों के भी वैसे रोगों से छुड़ावें ॥८९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जो ईश्वर ने सब प्राणियों की अधिक अवस्था और रोगों की निवृत्ति के लिये ओषधी रची हैं, उनसे वैद्यकशास्त्र में कही हुई रीतियों से सब रोगों को निवृत्त कर और पापों से अलग रह कर धर्म में नित्य प्रवृत्त रहें ॥८९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

रोगनिवारणार्था एवौषधय ईश्वरेण निर्मिता इत्याह ॥

अन्वय:

(याः) (फलिनीः) बहुफलाः (याः) (अफलाः) अविद्यमानफलाः (अपुष्पाः) पुष्परहिताः (याः) (च) (पुष्पिणीः) बहुपुष्पाः (बृहस्पतिप्रसूताः) बृहतां पतिनेश्वरेणोत्पादिताः (ताः) (नः) अस्मान् (मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (अंहसः) रोगजन्यदुःखात् ॥८९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! या फलिनीर्याः अफला या अपुष्पा याश्च पुष्पिणीर्बृहस्पतिप्रसूता ओषधयो नोंऽहसो यथा मुञ्चन्तु, ता युष्मानपि मोचयन्तु ॥८९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्या ईश्वरेण सर्वेषां प्राणिनां जीवनाय रोगनिवारणाय चौषधयो निर्मिताः, ताभ्यो वैद्यकशास्त्रोक्तोपयोगेन सर्वान् रोगान् हत्वा पापाचाराद् दूरे स्थित्वा धर्मे नित्यं प्रवर्त्तितव्यम् ॥८९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी हे जाणावे की सर्व प्राण्यांचे आयुष्य अधिक वाचावे व रोगांची निवृत्ती व्हावी यासाठी परमेश्वराने औषधांची निर्मिती केलेली आहे. तेव्हा त्यांनी वैद्यकशास्त्राच्या नियमांप्रमाणे सर्व रोगांना दूर करून पापापासून दूर राहून धर्मामध्ये नेहमी प्रवृत्त राहावे.