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अ॒न्या वो॑ऽअ॒न्याम॑वत्व॒न्यान्यस्या॒ऽउपा॑वत। ताः सर्वाः॑ संविदा॒नाऽइ॒दं मे॒ प्राव॑ता॒ वचः॑ ॥८८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒न्या। वः॒। अ॒न्याम्। अ॒व॒तु॒। अ॒न्या। अ॒न्यस्याः॑। उप॑। अ॒व॒त॒। ताः। सर्वाः॑। सं॒वि॒दा॒ना इति॑ सम्ऽवि॒दा॒नाः। इ॒दम्। मे॒। प्र। अ॒व॒त॒। वचः॑ ॥८८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:88


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

युक्ति से मिलाई हुई ओषधियाँ रोगों को नष्ट करती हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रियो ! (संविदानाः) आपस में संवाद करती हुई तुम लोग (मे) मेरे (इदम्) इस (वचः) वचन को (प्रावत) पालन करो, (ताः) उन (सर्वाः) सब ओषधियों की (अन्या) दूसरी (अन्यस्याः) दूसरी की रक्षा के समान (उपावत) समीप से रक्षा करो। जैसे (अन्या) एक (अन्याम्) दूसरी की रक्षा करती है, वैसे (वः) तुम लोगों को पढ़ाने हारी स्त्री (अवतु) तुम्हारी रक्षा करे ॥८८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे श्रेष्ठ नियमवाली स्त्री एक-दूसरे की रक्षा करती हैं, वैसे ही अनुकूलता से मिलाई हुई ओषधी सब रोगों से रक्षा करती हैं। हे स्त्रियो ! तुम लोग ओषधिविद्या के लिये परस्पर संवाद करो ॥८८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

युक्त्या संमेलिता ओषधयो रोगनाशिका जायन्त इत्याह ॥

अन्वय:

(अन्या) भिन्ना (वः) युष्मान् (अन्याम्) (अवतु) रक्षतु (अन्या) (अन्यस्याः) (उप) (अवत) (ताः) (सर्वाः) (संविदानाः) परस्परं संवादं कुर्वाणाः (इदम्) (मे) मम (प्र) (अवत) अत्र अन्येषामपि० [अष्टा०६.३.१३७] इति दीर्घः (वचः) ॥८८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रियः ! संविदाना यूयमिदं मे वचः प्रावत, तास्सर्वा ओषधीरन्या अन्यस्या इवोपावत। यथाऽन्याऽन्यां रक्षति, तथा वोऽध्यापिकाऽवतु ॥८८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सद्वृत्ताः स्त्रियोऽन्या अन्यस्या रक्षणं कुर्वन्ति, तथैवानुकूल्येन संमिलिता ओषधयः सर्वेभ्यो रोगेभ्यो रक्षन्ति। हे स्त्रियः ! यूयमोषधिविद्यायै परस्परं संवदध्वम् ॥८८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याप्रमाणे चांगले नियम पाळणारी स्त्री इतरांचे रक्षण करते त्याप्रमाणे योग्य प्रमाणात मिसळलेले औषध सर्व रोगांपासून बचाव करते. हे स्त्रियांनो ! तुम्ही औषधाविद्या जाणण्यासाठी परस्पर संवाद साधून विचार विनिमय करा.