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उच्छुष्मा॒ ओष॑धीनां॒ गावो॑ गो॒ष्ठादि॑वेरते। धन॑ꣳ सनि॒ष्यन्ती॑नामा॒त्मानं॒ तव॑ पूरुष ॥८२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत्। शुष्माः॑। ओष॑धीनाम्। गावः॑। गो॒ष्ठादि॑व। गो॒स्थादि॒वेति॑ गो॒स्थात्ऽइ॑व। ई॒र॒ते॒। धन॑म्। स॒नि॒ष्यन्ती॑नाम्। आ॒त्मान॑म्। तव॑। पू॒रु॒ष॒। पु॒रु॒षेति॑ पुरुष ॥८२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:82


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

ओषधियों का क्या निमित्त है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पूरुष) पुरुष-शरीर में सोनेवाले वा देहधारी ! (धनम्) ऐश्वर्य्य बढ़ानेवाले को (सनिष्यन्तीनाम्) सेवन करती हुई (ओषधीनाम्) सोमलता वा जौ आदि ओषधियों के सम्बन्ध से जैसे (शुष्माः) प्रशंसित बल करने हारी (गावः) गौ वा किरण (गोष्ठादिव) अपने स्थान से बछड़ों वा पृथिवी को प्राप्त होती हैं, वैसे ओषधियों का तत्त्व (तव) तेरे (आत्मानम्) आत्मा को (उदीरते) प्राप्त होता है, उन सब की तू सेवा कर ॥८२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे रक्षा की हुई गौ अपने दूध आदि से अपने बच्चों और मनुष्य आदि को पुष्ट करके बलवान् करती है, वैसे ही ओषधियाँ तुम्हारे आत्मा और शरीर को पुष्ट कर पराक्रमी करती हैं। जो कोई न खावे तो क्रम से बल और बुद्धि की हानि हो जावे। इसलिये ओषधी ही बल बुद्धि का निमित्त है ॥८२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

किन्निमित्ता ओषधयः सन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(उत्) (शुष्माः) प्रशस्तबलकारिण्यः। शुष्मेति बलनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.९) अर्शआदित्वादच् (ओषधीनाम्) सोमयवादीनाम् (गावः) धेनवः किरणा वा (गोष्ठादिव) यथा स्वस्थानात् तथा (ईरते) वत्सान् प्राप्नुवन्ति (धनम्) यद्धिनोति वर्धयति तत्। धनं कस्माद्धिनोतीति सतः ॥ (निरु०३.९) (सनिष्यन्तीनाम्) संभजन्तीनाम् (आत्मानम्) शरीराऽधिष्ठातारम् (तव) (पूरुष) पुरि देहे शयान देहधारक वा ॥८२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पूरुष ! या धनं सनिष्यन्तीनामोषधीनां शुष्मा गावो गोष्ठादिव तवात्मानमुदीरते, तास्त्वं सेवस्व ॥८२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यथा सम्पालिता गावो दुग्धादिभिः स्ववत्सान् मनुष्यादींश्च सम्पोष्य बलयन्ति, तथैवौषधयो युष्माकमात्मशरीरे सम्पोष्य पराक्रमयन्ति। यदि कश्चिदन्नादिकमौषधं न भुञ्जीत, तर्हि क्रमशो बलविज्ञानह्रासं प्राप्नुयात्, तस्मादेता एतन्निमित्ताः सन्तीति वेद्यम् ॥८२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जशा पाळीव गाई आपल्या पाडसांना व माणसांना दुधाने पुष्ट व बलवान करतात तशी औषधेही (सोमलता वगैरे) आत्मा व शरीर यांना पुष्ट करून पराक्रमी बनवितात. याप्रमाणे औषधांचे सेवन न केल्यास क्रमाने बल व बुद्धी यांची हानी होते. त्यामुळे औषध हेच बल व बुद्धीचे निमित्त आहे.