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ओष॑धीः॒ प्रति॑मोदध्वं॒ पुष्प॑वतीः प्र॒सूव॑रीः। अश्वा॑ऽइव स॒जित्व॑रीर्वी॒रुधः॑ पारयि॒ष्ण्वः᳖ ॥७७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ओष॑धीः। प्रति॑। मो॒द॒ध्व॒म्। पुष्प॑वती॒रिति॒ पुष्प॑ऽवतीः। प्र॒सूव॑री॒रिति॑ प्र॒ऽसूव॑रीः। अश्वाः॑ऽइ॒वेत्यश्वाः॑ऽइव। स॒जित्व॑री॒रिति॑ स॒ऽजित्व॑रीः। वी॒रुधः॑। पा॒र॒यि॒ष्ण्वः᳖ ॥७७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:77


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसी ओषधियों का सेवन करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग (अश्वा इव) घोड़ों के समान (सजित्वरीः) शरीरों के साथ संयुक्त रोगों को जीतनेवाली (वीरुधः) सोमलता आदि (पारयिष्ण्वः) दुःखों से पार करने के योग्य (पुष्पवतीः) प्रशंसित पुष्पों से युक्त (प्रसूवरीः) सुख देने हारी (ओषधीः) ओषधियों को प्राप्त होकर (प्रतिमोदध्वम्) नित्य आनन्द भोगो ॥७७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे घोड़ों पर चढ़े वीर पुरुष शत्रुओं को जीत, विजय को प्राप्त हो के आनन्द करते हैं, वैसे श्रेष्ठ ओषधियों के सेवन और पथ्याहार करने हारे जितेन्द्रिय मनुष्य रोगों से छूट आरोग्य को प्राप्त हो के नित्य आनन्द भोगते हैं ॥७७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृश्य ओषधयः सेव्या इत्याह ॥

अन्वय:

(ओषधीः) सोमादीन् (प्रति) (मोदध्वम्) आनन्दयत (पुष्पवतीः) प्रशस्तानि पुष्पाणि यासां ताः (प्रसूवरीः) सुखप्रसाविकाः (अश्वा इव) यथा तुरङ्गा (सजित्वरीः) शरीरैः सह संयुक्ता रोगान् जेतुं शीलाः (वीरुधः) सोमादीन् (पारयिष्ण्वः) रोगजदुःखेभ्यः पारं नेतुं समर्थाः ॥७७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्या यूयमश्वा इव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्ण्वः पुष्पवतीः प्रसूवरीरोषधीः संसेव्य प्रतिमोदध्वम् ॥७७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथाऽश्वारूढा वीराः शत्रून् जित्वा विजयं प्राप्याऽऽनन्दन्ति, तथा सदौषधसेविनः पथ्यकारिणो जितेन्द्रिया जना आरोग्यमवाप्य नित्यं मोदन्ते ॥७७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे घोड्यावर स्वार होऊन वीर पुरुष शत्रूंना जिंकतात व विजय प्राप्त करून आनंदी होतात तसे श्रेष्ठ औषधांच्या सेवनाने व पथ्याहाराने जितेंद्रिय माणसे रोगांपासून मुक्त होऊन सदैव आनंदी राहतात.