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सीरा॑ युञ्जन्ति क॒वयो॑ यु॒गा वित॑न्वते॒ पृथ॑क्। धीरा॑ दे॒वेषु॑ सुम्न॒या ॥६७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सीरा॑। यु॒ञ्ज॒न्ति॒। क॒वयः॑। यु॒गा। वि। त॒न्व॒ते॒। पृथ॑क्। धीराः॑। दे॒वेषु॑। सु॒म्न॒येति॑ सुम्न॒ऽया ॥६७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:67


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब खेती और योग करने की विद्या अगले मन्त्र में कही है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (धीराः) ध्यानशील (कवयः) बुद्धिमान् लोग (सीरा) हलों और (युगा) जुआ आदि को (युञ्जन्ति) युक्त करते और (सुम्नया) सुख के साथ (देवेषु) विद्वानों में (पृथक्) अलग (वितन्वते) विस्तारयुक्त करते, वैसे सब लोग इस खेती कर्म का सेवन करें ॥६७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों की शिक्षा से कृषिकर्म की उन्नति करें। जैसे योगी नाडि़यो में परमेश्वर को समाधियोग से प्राप्त होते हैं, वैसे ही कृषिकर्म द्वारा सुखों को प्राप्त होवें ॥६७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ कृषियोगविद्या आह ॥

अन्वय:

(सीरा) सीराणि हलानि (युञ्जन्ति) युञ्जन्तु (कवयः) मेधाविनः। कविरिति मेधाविनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.१५) (युगा) युगानि (वि) (तन्वते) विस्तृणन्ति (पृथक्) (धीराः) ध्यानवन्तः (देवेषु) विद्वत्सु (सुम्नया) सुम्नेन सुखेन, अत्र तृतीयैकवचनस्यायाजादेशः [आङयाजयारामुपसङ्ख्यानम्। (अष्टा०वा०७.१.३९)। [अयं मन्त्रः शत०७.२.२.४ व्याख्यातः] ॥६७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा धीराः कवयः सीरा युगा च युञ्जन्ति, सुम्नया देवेषु पृथग् वितन्वते, तथा सर्वैरेतदनुष्ठेयम् ॥६७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैरिह विद्वच्छिक्षया कृषिकर्मोन्नेयम्, यथा योगिनो नाडीषु परमेश्वरं समाधियोगेनोपकुर्वन्ति, तथैव कृषिकर्मद्वारा सुखोपयोगः कर्त्तव्यः ॥६७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकर आहे. माणसांनी विद्वानांकडून शिक्षित होऊन कृषीची उन्नती करावी. जसे योगी समाधीयोगाच्या साह्याने परमेश्वराला प्राप्त करतात, तसेच कृषिकर्माद्वारे सुख प्राप्त करावे.