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ताऽअ॑स्य॒ सूद॑दोहसः॒ सोम॑ꣳ श्रीणन्ति॒ पृश्न॑यः। जन्म॑न् दे॒वानां॒ विश॑स्त्रि॒ष्वा रो॑च॒ने दि॒वः ॥५५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ताः। अ॒स्य॒। सूद॑दोहस॒ इति॒ सूद॑ऽदोहसः। सोम॑म्। श्री॒ण॒न्ति॒। पृश्न॑यः। जन्म॑न्। दे॒वाना॑म्। विशः॑। त्रि॒षु। आ। रो॒च॒ने। दि॒वः ॥५५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:55


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (देवानाम्) दिव्य विद्वान् पतियों की (सूददोहसः) सुन्दर रसोइया और गौ आदि के दुहनेवाले सेवकोंवाली (पृश्नयः) कोमल शरीर सूक्ष्म अङ्गयुक्त स्त्री, दूसरे (जन्मन्) विद्यारूप जन्म में विदुषी होके (दिवः) दिव्य (अस्य) इस गृहाश्रम के (सोमम्) उत्तम ओषधियों के रस से युक्त भोजन (श्रीणन्ति) पकाती हैं, (ताः) वे ब्रह्मचारिणी (आरोचने) अच्छे रुचिकारक व्यवहार में (त्रिषु) तीनों अर्थात् गत, आगामी और वर्त्तमान कालविभागों में सुख देनेवाली होती तथा (विशः) उत्तम सन्तानों को भी प्राप्त होती हैं ॥५५ ॥
भावार्थभाषाः - जब अच्छी शिक्षा को प्राप्त हुए युवा विद्वानों की अपने सदृश रूप और गुण से युक्त स्त्री होवें, तो गृहाश्रम में सर्वदा सुख और अच्छे सन्तान उत्पन्न होवें। इस प्रकार किये विना संसार का सुख और शरीर छूटने के पश्चात् मोक्ष कभी प्राप्त नहीं हो सकता ॥५५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ताः) ब्रह्मचारिणीः (अस्य) गृहाश्रमस्य (सूददोहसः) सूदाः सुष्ठु पाचका दोहसो गवादिदोग्धारश्च यासां ताः (सोमम्) सोमरसान्वितं पाकम् (श्रीणन्ति) परिपक्वं कुर्वन्ति (पृश्नयः) सुस्पर्शास्तन्वङ्ग्यः, अत्र स्पृशधातोर्निः प्रत्ययः सलोपश्च (जन्मन्) जन्मनि प्रादुर्भावे (देवानाम्) दिव्यानां विदुषां पतीनाम् (विशः) प्रजाः (त्रिषु) भूतभविष्यद्वर्त्तमानेषु कालावयवेषु (आ) (रोचने) रुचिकरे व्यवहारे (दिवः) दिवस्य। [अयं मन्त्रः शत०८.७.३.२१ व्याख्यातः] ॥५५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - या देवानां सूददोहसः पृश्नयः पत्न्यो जन्मन् द्वितीये विद्याजन्मनि विदुष्यो भूत्वा दिवोऽस्य सोमं श्रीणन्ति, ता आरोचने त्रिषु सुखदा भवन्ति, विशश्च प्राप्नुवन्ति ॥५५ ॥
भावार्थभाषाः - यदा सुशिक्षितानां विदुषां यूनां स्वसदृशा रूपगुणसम्पन्नाः स्त्रियो भवेयुस्तदा गृहाश्रमे सर्वदा सुखं सुसन्तानाश्च जायेरन्। नह्येवं विना वर्त्तमानेऽभ्युदयो मरणानन्तरं निःश्रेयसं च प्राप्तुं शक्यम् ॥५५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर उत्तम शिक्षणयुक्त तरुण विद्वानांना त्यांच्यासारख्याच रूपगुणांनी युक्त स्त्रिया मिळतील तर त्यांचा गृहस्थाश्रम सर्व दृष्टीने सुखी होईल व उत्तम संतानांची प्राप्ती होईल. याप्रमाणे न झाल्यास सांसारिक सुखही मिळू शकत नाही व शरीर त्यागानंतर मोक्षही प्राप्त होऊ शकत नाही.