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लो॒कं पृ॑ण छि॒द्रं पृ॒णाथो॑ सीद ध्रु॒वा त्वम्। इ॒न्द्रा॒ग्नी त्वा॒ बृह॒स्पति॑र॒स्मिन् योना॑वसीषदन् ॥५४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

लो॒कम्। पृ॒ण॒। छि॒द्रम्। पृ॒ण॒। अथो॒ऽइत्यथो॑। सी॒द॒। ध्रु॒वा। त्वम्। इ॒न्द्रा॒ग्नीऽइती॑न्द्रा॒ग्नी। त्वा॒। बृह॒स्पतिः॑। अ॒स्मिन्। योनौ॑। अ॒सी॒ष॒द॒न्। अ॒सी॒ष॒द॒न्नित्य॑सीसदन् ॥५४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:54


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्ये ! जिस (त्वा) तुझ को (योनौ) बन्ध के छेदक मोक्षप्राप्ति के हेतु (अस्मिन्) इस विद्या के बोध में (इन्द्राग्नी) माता-पिता तथा (बृहस्पतिः) बड़ी-बड़ी वेदवाणियों की रक्षा करनेवाली अध्यापिका स्त्री (असीषदन्) प्राप्त करावें, उसमें (त्वम्) तू (ध्रुवा) दृढ़ निश्चय के साथ (सीद) स्थित हो, (अथो) इसके अनन्तर (छिद्रम्) छिद्र को (पृण) पूर्ण कर और (लोकम्) देखने योग्य प्राणियों को (पृण) तृप्त कर ॥५४ ॥
भावार्थभाषाः - माता-पिता और आचार्यों को चाहिये कि इस प्रकार की धर्म्मयुक्त विद्या और शिक्षा करें कि जिसको ग्रहण कर कन्या लोग चिन्तारहित हों। सब बुरे व्यसनों को त्याग और समावर्तन संस्कार के पश्चात् स्वयंवर विवाह करके पुरुषार्थ के साथ आनन्द में रहें ॥५४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(लोकम्) संप्रेक्षितव्यम् (पृण) तर्पय (छिद्रम्) छिनत्ति यत्तत् (पृण) पिपूर्द्धि (अथो) (सीद) (ध्रुवा) दृढनिश्चया (त्वम्) (इन्द्राग्नी) मातापितरौ (त्वा) त्वाम् (बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाचः पालिकाध्यापिका (अस्मिन्) विद्याबोधे (योनौ) बन्धच्छेदके मोक्षप्रापके (असीषदन्) प्रापयन्तु। [अयं मन्त्रः शत०८.७.२.६ व्याख्यातः] ॥५४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्ये ! यां त्वा योनाविस्मिन्निन्द्राग्नी बृहस्पतिश्चासीषदन्, तस्मिन् त्वं ध्रुवा सीदाथो छिद्रं पृण लोकं पृण ॥५४ ॥
भावार्थभाषाः - मातापित्राचार्यैरीदृशी धर्म्या विद्याशिक्षा क्रियेत, यां स्वीकृत्य सर्वाः कन्या निश्चिन्ता भूत्वा, सर्वाणि दुर्व्यसनानि त्यक्त्वा समावर्त्तनानन्तरं स्वयंवरं विवाहं कृत्वा सुपुरुषार्थेनानन्दयेयुः ॥५४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माता-पिता व आचार्य यांनी अशा प्रकारचे धर्मयुक्त शिक्षण व विद्या द्यावी की जे ग्रहण करून मुली चिंतारहित व्हाव्यात. सर्व वाईट व्यसनांचा त्याग करून समावर्तन संस्कारानंतर विवाह करून आनंदी राहाव्यात.