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चिद॑सि॒ तया॑ दे॒वत॑याङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वा सी॑द। परि॒चिद॑सि॒ तया॑ दे॒वत॑याङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वा सी॑द ॥५३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

चित्। अ॒सि॒। तया॑। दे॒वत॑या। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। सी॒द॒। प॒रि॒चिदिति॑ परि॒ऽचित्। अ॒सि॒। तया॑। दे॒वत॑या। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। सी॒द॒ ॥५३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:53


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कन्याओं को क्या करके क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्ये ! जो तू (चित्) चिताई (असि) हुई (तया) उस (देवतया) दिव्यगुण प्राप्त कराने हारी विद्वान् स्त्री के साथ (अङ्गिरस्वत्) प्राणों के तुल्य (ध्रुवा) निश्चल (सीद) स्थिर हो, हे ब्रह्मचारिणि ! जो तू (परिचित्) विविध विद्या को प्राप्त हुई (असि) है, सो तू (तया) उस (देवतया) धर्मानुष्ठान से युक्त दिव्यसुखदायक क्रिया के साथ (अङ्गिरस्वत्) ईश्वर के समान (ध्रुवा) अचल (सीद) अवस्थित हो ॥५३ ॥
भावार्थभाषाः - सब माता-पिता और पढ़ानेहारी विदुषी स्त्रियों को चाहिये कि कन्याओं को सम्यक् बुद्धिमती करें। हे कन्या लोगो ! तुम जो पूर्ण अखण्डित ब्रह्मचर्य से सम्पूर्ण विद्या और अच्छी शिक्षा को प्राप्त युवती होकर, अपने तुल्य वरों के साथ स्वयंवर विवाह करके, गृहाश्रम का सेवन करो, तो सब सुखों को प्राप्त हो और सन्तान भी अच्छे होवें ॥५३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कन्याभिः किं कृत्वा किं कार्य्यमित्याह ॥

अन्वय:

(चित्) संज्ञप्ता (असि) (तया) (देवतया) दिव्यगुणप्रापिकया (अङ्गिरस्वत्) प्राणवत् (ध्रुवा) निश्चला (सीद) भव (परिचित्) विद्यापरिचयं प्राप्ता (असि) (तया) धर्मानुष्ठानयुक्तया क्रियया (देवतया) दिव्यसुखप्रदया (अङ्गिरस्वत्) हिरण्यगर्भवत् (ध्रुवा) निष्कम्पा (सीद) अवतिष्ठस्व। [अयं मन्त्रः शत०७.१.१.३० व्याख्यातः] ॥५३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्ये ! या चिदसि सा त्वं तया देवतया सहाङ्गिरस्वत् ध्रुवा सीद। हे ब्रह्मचारिणि ! त्वं परिचिदसि सा तया देवतया सहाङ्गिरस्वद् ध्रुवा सीद ॥५३ ॥
भावार्थभाषाः - सर्वैर्मातापित्रादिभिरध्यापिकाभिर्विदुषीभिश्च कन्याः सम्बोधनीयाः। भो कन्याः ! यूयं यदि पूर्णेनाखण्डितेन ब्रह्मचर्य्येणाखिला विद्याः सुशिक्षाः प्राप्य युवतयो भूत्वा स्वसदृशैर्वरैः स्वयंवरविवाहं कृत्वा गृहाश्रमं कुर्यात, तर्हि सर्वाणि सुखानि लभेध्वं सुसन्तानाश्च जायेरन् ॥५३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माता-पिता व अध्यापन करणाऱ्या विदुषी स्त्रियांनी मुलींना सम्यक बुद्धिमान करावे. हे कन्यांनो ! तुम्ही पूर्ण अखंडित ब्रह्मचर्य पालन करून संपूर्ण विद्या व चांगले शिक्षण प्राप्त करून युवावस्थेत आपल्यासारख्याच वराशी स्वयंवर विवाह करून गृहस्थाश्रम स्वीकाराल तर सर्व सुख प्राप्त होईल व संतानेही चांगली होतील.