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स बो॑धि सू॒रिर्म॒घवा॒ वसु॑पते॒ वसु॑दावन्। यु॒यो॒ध्य᳕स्मद् द्वेषा॑सि वि॒श्वक॑र्मणे॒ स्वाहा॑ ॥४३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। बो॒धि॒। सू॒रिः। म॒घवेति॑ म॒घऽवा॑। वसु॑पत॒ इति॒ वसु॑ऽपते। वसु॑दाव॒न्निति॒ वसु॑ऽदावन्। यु॒यो॒धि। अ॒स्मत्। द्वेषा॑सि। वि॒श्वक॑र्मण॒ इति॑ वि॒श्वऽक॑र्मणे। स्वाहा॑ ॥४३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:43


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य लोग क्या करके किस को प्राप्त हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वसुपते) धनों के पालक (वसुदावन्) सुपुत्रों के लिये धन देनेवाले जो (मघवा) प्रशंसित विद्या से युक्त (सूरिः) बुद्धिमान् आप सत्य को (बोधि) जानें, (सः) सो आप (विश्वकर्म्मणे) सम्पूर्ण शुभ कर्मों के अनुष्ठान के लिये (स्वाहा) सत्य वाणी का उपदेश करते हुए आप (अस्मत्) हमसे (द्वेषांसि) द्वेषयुक्त कर्मों से (युयोधि) पृथक् कीजिये ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ब्रह्मचर्य्य के साथ जितेन्द्रिय हो, द्वेष को छोड़, धर्मानुसार उपदेश कर और सुन के प्रयत्न करते हैं, वे ही धर्मात्मा विद्वान् लोग सम्पूर्ण सत्य-असत्य के जानने और उपदेश करने के योग्य होते हैं, और अन्य हठ अभिमान युक्त क्षुद्र पुरुष नहीं ॥४३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्याः किं कृत्वा किं प्राप्नुयुरित्याह ॥

अन्वय:

(सः) श्रोता वक्ता च (बोधि) बुध्येत (सूरिः) मेधावी (मघवा) पूजितविद्यायुक्तः (वसुपते) वसूनां धनानां पालक (वसुदावन्) वसूनि धनानि सुपात्रेभ्यो ददाति तत्सम्बुद्धौ (युयोधि) वियोजय (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (द्वेषांसि) द्वेषयुक्तानि कर्माणि (विश्वकर्मणे) अखिलशुभकर्मानुष्ठानाय (स्वाहा) सत्यां वाणीम्। [अयं मन्त्रः शत०६.८.२.९ व्याख्यातः] ॥४३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वसुपते वसुदावन् ! यो मघवा सूरिर्भवान् सत्यं बोधि, स विश्वकर्मणे स्वाहा सत्यवाणीमुपदिशन् संस्त्वमस्मद् द्वेषांसि वियुयोधि सततं दूरीकुरु ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः ! ब्रह्मचर्य्येण जितेन्द्रिया भूत्वा द्वेषं विहाय धर्मेणोपदिश्य श्रुत्वा च प्रयतन्ते, त एव धार्मिका विद्वांसोऽखिलं सत्यासत्यं ज्ञातुमुपदेष्टुं चार्हन्ति, नेतरे हठाभिमानयुक्ताः क्षुद्राशयाः ॥४३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे ब्रह्मचर्य पाळून जितेंद्रिय बनतात व द्वेष सोडून देतात व धर्मानुसार उपदेश करून ऐकून तसे वर्तन करण्याचा प्रयत्न करतात. ते धर्मात्मा व विद्वान बनून संपूर्ण सत्य व असत्य जाणून त्याचा उपदेश करतात. इतर हटवादी अभिमानी क्षुद्र पुरुष तसे नसतात.