हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर पुत्रों को माता-पिता के विषय में परस्पर योग्य वर्त्ताव करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः पुत्रैर्जनकजननीभ्यां परस्परं वर्त्तमानं योग्यं कार्य्यमित्याह ॥
(पुनः) (ऊर्जा) पराक्रमेण (नि) (वर्त्तस्व) (पुनः) (अग्ने) (इषा) अन्नेन (आयुषा) जीवनेन (पुनः) (नः) अस्मभ्यम् (पाहि) (अंहसः) पापाचरणात्। [अयं मन्त्रः शत०६.८.२.६ व्याख्यातः] ॥४० ॥