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गर्भो॑ऽअ॒स्योष॑धीनां॒ गर्भो॒ वन॒स्पती॑नाम्। गर्भो॒ विश्व॑स्य भू॒तस्याग्ने॒ गर्भो॑ऽअ॒पाम॑सि ॥३७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गर्भः॑। अ॒सि॒। ओष॑धीनाम्। गर्भः॑। वन॒स्पती॑नाम्। गर्भः॑। विश्व॑स्य। भू॒तस्य॑। अग्ने॑। गर्भः॑। अ॒पाम्। अ॒सि॒ ॥३७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:37


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर जीव कहाँ-कहाँ जाता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) दूसरे शरीर को प्राप्त होनेवाले जीव ! जिससे तू अग्नि के समान जो (ओषधीनाम्) सोमलता आदि वा यवादि ओषधियों के (गर्भः) दोषों के मध्य (गर्भः) गर्भ (वनस्पतीनाम्) पीपल आदि वनस्पतियों के बीच (गर्भः) शोधक (विश्वस्य) सब (भूतस्य) उत्पन्न हुए संसार के मध्य (गर्भः) ग्रहण करनेहारा और जो (अपाम्) प्राण वा जलों का (गर्भः) गर्भरूप भीतर रहनेहारा (असि) है, इसलिये तू अज अर्थात् स्वयं जन्मरहित (असि) है ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम लोगों को चाहिये कि जो बिजुली के समान सब के अन्तर्गत जीव जन्म लेनेवाले हैं, उनको जानो ॥३७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्जीवस्य क्व क्व गतिर्भवतीत्याह ॥

अन्वय:

(गर्भः) योऽनर्थान् गिरति विनाशयति सः। गर्भो गृभेर्गृणात्यर्थे गिरत्यनर्थानिति यदा हि स्त्री गुणान् गृह्णाति गुणाश्चास्या गृह्यन्तेऽथ गर्भो भवति ॥ (निरु०१०.२३) (असि) (ओषधीनाम्) सोमयवादीनाम् (गर्भः) (वनस्पतीनाम्) अश्वत्थादीनाम् (गर्भः) (विश्वस्य) सर्वस्य (भूतस्य) उत्पन्नस्य (अग्ने) देहान्तरप्रापक जीव (गर्भः) (अपाम्) प्राणानां जलानां वा (असि)। [अयं मन्त्रः शत०६.८.२.४ व्याख्यातः] ॥३७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! अग्नितुल्यजीव यतस्त्वमग्निरिवौषधीनां गर्भो वनस्पतीनां गर्भः, विश्वस्य भूतस्य गर्भोऽपां गर्भश्चासि, तस्मात् त्वमजोऽसि ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! ये विद्युद्वत् सर्वान्तर्गता जीवा जन्मवन्तः सन्ति, तान् जानन्त्विति ॥३७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे जीव विद्युतप्रमाणे सर्वांमध्ये (जल व इतर पदार्थांमध्ये) जन्म घेतात त्यांना जाणा.