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विश्वा॑ रू॒पाणि॒ प्रति॑मुञ्चते क॒विः प्रासा॑वीद् भ॒द्रं द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे। वि नाक॑मख्यत् सवि॒ता वरे॒ण्योऽनु॑ प्र॒याण॑मु॒षसो॒ विरा॑जति ॥३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वा॑। रू॒पाणि॑। प्रति॑। मु॒ञ्च॒ते॒। क॒विः। प्र। अ॒सा॒वी॒त्। भ॒द्रम्। द्वि॒पद॒ इति॑ द्वि॒ऽपदे॑। चतु॑ष्पदे। चतुः॑पद॒ इति॑ चतुः॑पदे। वि। नाक॑म्। अ॒ख्य॒त्। स॒वि॒ता। वरे॑ण्यः। अनु॑। प्र॒याण॑म्। प्र॒यान॒मिति॑ प्र॒ऽयान॑म्। उ॒षसः॑। वि। रा॒ज॒ति॒ ॥३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:3


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में परमेश्वर के कृत्य का उपदेश किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (वरेण्यः) ग्रहण करने योग्य (कविः) जिसकी दृष्टि और बुद्धि सर्वत्र है वा सर्वज्ञ (सविता) सब संसार का उत्पादक जगदीश्वर वा सूर्य्य (उषसः) प्रातःकाल का समय (प्रयाणम्) प्राप्त करने को (अनुविराजति) प्रकाशित होता है (विश्वा) सब (रूपाणि) पदार्थों के स्वरूप (प्रतिमुञ्चते) प्रसिद्ध करता है और (द्विपदे) मनुष्यादि दो पगवाले (चतुष्पदे) तथा गौ आदि चार पगवाले प्राणियों के लिये (नाकम्) सब दुःखों से पृथक् (भद्रम्) सेवने योग्य सुख को (व्यख्यत्) प्रकाशित करता और (प्रासावीत्) उत्पन्न करता है, ऐसे उस सूर्य्यलोक को उत्पन्न करनेवाले ईश्वर को तुम लोग जानो ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जिस परमेश्वर ने सम्पूर्ण रूपवान् द्रव्यों का प्रकाशक, प्राणियों के सुख का हेतु, प्रकाशमान सूर्यलोक रचा है, उसी की भक्ति सब मनुष्य करें ॥३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्रे परमात्मनः कृत्यमुपदिश्यते ॥

अन्वय:

(विश्वा) सर्वाणि (रूपाणि) (प्रति) (मुञ्चते) (कविः) क्रान्तदर्शनः क्रान्तप्रज्ञः सर्वज्ञो वा (प्र) (असावीत्) उत्पादयति (भद्रम्) जननीयं सुखम् (द्विपदे) मनुष्याद्याय (चतुष्पदे) गवाद्याय (वि) (नाकम्) सर्वदुःखरहितम् (अख्यत्) प्रकाशयति (सविता) सकलजगत् प्रसविता जगदीश्वरः सूर्य्यो वा (वरेण्यः) स्वीकर्त्तुमर्हः (अनु) (प्रयाणम्) प्रकृष्टं प्रापणम् (उषसः) प्रभातस्य (वि) (राजति) प्रकाशते ॥३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यो वरेण्यः कविः सवितोषसः प्रयाणमनुविराजति विश्वा रूपाणि प्रतिमुञ्चते। द्विपदे चतुष्पदे नाकं व्यख्यद् भद्रं प्रासावीत् तमीदृशमुत्पादकं सूर्यं परमेश्वरं विजानीत ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। येन जगदीश्वरेण सकलरूपप्रकाशकः प्राणिनां सुखहेतुः प्रकाशमानः सूर्य्यो रचितस्तस्यैव भक्तिं सर्वे मनुष्याः कुर्वन्त्विति ॥३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. संपूर्ण पदार्थांचे स्वरूप प्रकाशित करणारा व प्राण्यांना सुखकारक होणारा सूर्य ज्या परमेश्वराने निर्माण केला आहे त्या परमेश्वराची सर्व माणसांनी भक्ती करावी.