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यस्ते॑ऽअ॒द्य कृ॒णव॑द् भद्रशोचेऽपू॒पं दे॑व घृ॒तव॑न्तमग्ने। प्र तं न॑य प्रत॒रं वस्यो॒ऽअच्छा॒भि सु॒म्नं दे॒वभ॑क्तं यविष्ठ ॥२६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। ते॒। अ॒द्य। कृ॒णव॑त्। भ॒द्र॒शो॒च॒ इति॑ भद्रऽशोचे। अ॒पू॒पम्। दे॒व॒। घृ॒तव॑न्त॒मिति॑ घृ॒तऽव॑न्तम्। अ॒ग्ने॒। प्र। तम्। न॒य॒। प्र॒त॒रमिति॑ प्रऽत॒रम्। वस्यः॑। अच्छ॑। अ॒भि। सु॒म्नम्। दे॒वभ॑क्त॒मिति॑ दे॒वऽभ॑क्तम्। य॒वि॒ष्ठ॒ ॥२६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:26


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् लोग कैसे रसोइया को स्वीकार करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (भद्रशोचे) सेवने योग्य दीप्ति से युक्त (यविष्ठ) तरुण अवस्थावाले (देव) दिव्य भोगों के दाता (अग्ने) विद्वन् पुरुष ! (यः) जो (ते) आपका (घृतवन्तम्) बहुत घृत आदि पदार्थों से संयुक्त (अभि) सब प्रकार से (सुम्नम्) सुखरूप (देवभक्तम्) विद्वानों के सेवने योग्य (अपूपम्) भोजन के योग्य पदार्थोंवाला (वस्यः) अत्यन्त भोग्य (अच्छ) अच्छे-अच्छे पदार्थों को (कृणवत्) बनावे, (तम्) उस (प्रतरम्) पाक बनाने हारे पुरुष को आप (अद्य) आज (प्रणय) प्राप्त हूजिये ॥२६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों से अच्छी शिक्षा को प्राप्त हुए अति उत्तम व्यञ्जन और शष्कुली आदि तथा शाक आदि स्वाद से युक्त रुचिकारक पदार्थों को बनानेवाले पाचक पुरुष का ग्रहण करें ॥२६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः कीदृशः पाचकः स्वीकार्य इत्याह ॥

अन्वय:

(यः) (ते) (अद्य) (कृणवत्) कुर्यात् (भद्रशोचे) भद्रा भजनीया शोचिर्दीप्तिर्यस्य तत्सम्बुद्धौ (अपूपम्) (देव) दिव्यभोगप्रद (घृतवन्तम्) बहु घृतं विद्यते यस्मिन् तम् (अग्ने) विद्वन् (प्र) (तम्) (नय) प्राप्नुहि (प्रतरम्) पाकस्य संतारकम् (वस्यः) अतिशयितं वसु तत् (अच्छ) (अभि) (सुम्नम्) सुखस्वरूपम् (देवभक्तम्) देवैर्विद्वद्भिः सेवितम् (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् ॥२६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे भद्रशोचे यविष्ठ देवाग्ने ! यस्ते तव घृतवन्तमभिसुम्नं वस्यो देवभक्तमपूपमच्छ कृणवत् तं प्रतरं पाककर्त्तारं त्वमद्य प्रणय ॥२६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्विद्वत्सुशिक्षितोऽत्युत्तमानां व्यञ्जनानां सुस्वादिष्ठानामन्नानां रुचिकराणां निर्माता पाककर्त्ता संग्राह्यः ॥२६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी विद्वानांकडून पाककौशल्य प्राप्त केलेल्या व अति उत्तम खाद्य पदार्थ बनविणाऱ्या व भाजी आणि इतर पदार्थ रुचकर बनविणाऱ्या व्यक्तीला स्वयंपाकी नेमावे.