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वि॒द्मा ते॑ऽअग्ने त्रे॒धा त्र॒याणि॑ वि॒द्मा ते॒ धाम॒ विभृ॑ता पुरु॒त्रा। वि॒द्मा ते॒ नाम॑ पर॒मं गुहा॒ यद्वि॒द्मा तमुत्सं॒ यत॑ऽआज॒गन्थ॑ ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒द्म। ते॒। अ॒ग्ने॒। त्रे॒धा। त्र॒याणि॑। वि॒द्म। ते॒। धाम॑। विभृ॒तेति॒ विभृ॑ऽता। पु॒रु॒त्रेति॑ पुरु॒ऽत्रा। वि॒द्म। ते॒। नाम॑। प॒र॒मम्। गुहा॑। यत्। वि॒द्म। तम्। उत्स॑म्। यतः॑। आ॒ज॒गन्थेत्या॑ऽज॒गन्थ॑ ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् पुरुष ! (ते) आपके जो (त्रेधा) तीन प्रकार से (त्रयाणि) तीन कर्म हैं, उनको हम लोग (विद्म) जानें। हे स्थानों के स्वामी ! (ते) आपके जो (विभृता) विशेष करके धारण करने के योग्य (पुरुत्रा) बहुत (धाम) नाम, जन्म और स्थान रूप हैं, उनको हम लोग (विद्म) जानें। हे विद्वन् पुरुष ! (ते) आपका (यत्) जो (गुहा) बुद्धि में स्थित गुप्त (परमम्) श्रेष्ठ (नाम) नाम है, उसको हम लोग (विद्म) जानें (यतः) जिस कारण आप (आजगन्थ) अच्छे प्रकार प्राप्त होवें (तम्) उस (उत्सम्) कूप के तुल्य तर करनेहारे आपको (विद्म) हम लोग जानें ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - प्रजा के पुरुष और राजा को योग्य है कि राजनीति के कामों, सब स्थानों और सब पदार्थों के नामों को जानें। जैसे कृषक कुएँ से जल निकाल खेत आदि को तृप्त करते हैं, वैसे ही धनादि पदार्थों से प्रजा राजा को और राजा प्रजाओं को तृप्त करे ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(विद्म) जानीयाम, अत्र चतसृषु क्रियासु संहितायां द्व्यचोऽतस्तिङः [अष्टा०६.३.१३५] इति दीर्घः। विदो लटो वा [अष्टा०३.४.८३] इति णलादय आदेशाः। (ते) तव (अग्ने) विद्वन् ! (त्रेधा) त्रिभिः प्रकारैः (त्रयाणि) त्रीणि (विद्म) (ते) तव (धाम) धामानि (विभृता) विशेषेण धर्तुं योग्यानि (पुरुत्रा) पुरूणि बहूनि (विद्म) (ते) (नाम) (परमम्) (गुहा) गुहायां स्थितं गुप्तम् (यत्) (विद्म) (तम्) (उत्सम्) कूप इवार्द्रीकरम्। उत्स इति कूपनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.२३) (यतः) यस्मात् (आजगन्थ) आगच्छेः। [अयं मन्त्रः शत०६.७.४.४ व्याख्यातः] ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! ते तव यानि त्रेधा त्रयाणि कर्माणि सन्ति, तानि वयं विद्म। हे स्थानेश ! ते यानि विभृता पुरुत्रा धाम धामानि सन्ति, तानि वयं विद्म। हे विद्वन् ! ते तव यद् गुहा परमं नामास्ति, तद्वयं विद्म। यतस्त्वमाजगन्थ, तं त्वामुत्समिव विद्म विजानीमः ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - प्रजास्थैर्जनै राज्ञा च राजनीतिकर्माणि, स्थानानि, सर्वेषां नामानि च विज्ञेयानि। यथा कृषीवलाः कूपाज्जलमुत्कृष्य क्षेत्रादीनि तर्पयन्ति, तथैव प्रजास्थैर्धनादिभी राजा तर्पणीयो राज्ञा प्रजाश्च तर्प्पणीयाः ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व प्रजा यांना राजनीतीची कामे, सर्व स्थाने व सर्व पदार्थ माहीत असावेत. जसे विहिरीतून पाणी काढून शेताला पाणीपुरवठा केला जातो तसेच धन इत्यादींनी प्रजेने राजाला व राजाने प्रजेला संतुष्ट करावे.