वांछित मन्त्र चुनें

तुभ्यं॒ ताऽअ॑ङ्गिरस्तम॒ विश्वाः॑ सुक्षि॒तयः॒ पृथ॑क्। अग्ने॒ कामा॑य येमिरे ॥११६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तुभ्य॑म्। ताः। अ॒ङ्गि॒र॒स्त॒मेत्य॑ङ्गिरःऽतम। विश्वाः॑। सु॒क्षि॒तय॒ इति॑ सुऽक्षि॒तयः॑। पृथ॑क्। अग्ने॑। कामा॑य। ये॒मि॒रे॒ ॥११६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:116


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अङ्गिरस्तम) अतिशय करके सार के ग्राहक (अग्ने) प्रकाशमान राजन् ! जो (विश्वाः) सब (सुक्षितयः) श्रेष्ठ मनुष्योंवाली प्रजा (पृथक्) अलग (कामाय) इच्छा की सिद्धि के लिये (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये (येमिरे) प्राप्त होवें, (ताः) उन प्रजाओं की आप निरन्तर रक्षा कीजिये ॥११६ ॥
भावार्थभाषाः - जहाँ प्रजा के लोग धर्मात्मा राजा को प्राप्त हो के अपनी-अपनी इच्छा पूरी करते हैं, वहाँ राजा की वृद्धि क्यों न होवे? ॥११६ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

(तुभ्यम्) (ताः) (अङ्गिरस्तम) अतिशयेन सारग्राहिन् (विश्वाः) अखिलाः (सुक्षितयः) श्रेष्ठमनुष्याः प्रजाः (पृथक्) (अग्ने) प्रकाशमान राजन् ! (कामाय) इच्छासिद्धये (येमिरे) प्राप्नुवन्तु। [अयं मन्त्रः शत०७.३.२.८ व्याख्यातः] ॥११६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अङ्गिरस्तमाग्ने राजन् ! या विश्वाः सुक्षितयः प्रजाः पृथक् कामाय तुभ्यं येमिरे, तास्त्वं सततं रक्ष ॥११६ ॥
भावार्थभाषाः - यत्र प्रजा धार्मिकं राजानं प्राप्य स्वां स्वामभिलाषां प्राप्नुवन्ति, तत्र राजा कथं न वर्द्धेत ॥११६ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या ठिकाणी धर्मात्मा राजा असेल तेथे प्रजेची इच्छा पूर्ण होते. तेथे राजाचा उत्कर्ष का बरे होणार नाही?