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आप्या॑यस्व॒ समे॑तु ते वि॒श्वतः॑ सोम॒ वृष्ण्य॑म्। भवा॒ वाज॑स्य सङ्ग॒थे ॥११२ ॥

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पद पाठ

आ। प्या॒य॒स्व॒। सम्। ए॒तु॒। ते॒। वि॒श्वतः॑। सो॒म॒। वृष्ण्य॑म्। भव॑। वाज॑स्य। स॒ङ्ग॒थ इति॑ सम्ऽग॒थे ॥११२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:112


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजपुरुष क्या करके कैसे हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) चन्द्रमा के समान कान्तियुक्त राजपुरुष ! जैसे सोम गुणयुक्त विद्वान् के सङ्ग से (ते) तेरे लिये (वृष्ण्यम्) वीर्य्य पराक्रमवाले पुरुष के कर्म को (विश्वतः) सब ओर से (समेतु) सङ्गत हो, उससे आप (आप्यायस्व) बढ़िये, (वाजस्य) विज्ञान और वेग से संग्राम के जाननेहारे स्वामी की आज्ञा से (सङ्गथे) युद्ध में विजय करनेवाले (भव) हूजिये ॥११२ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को नित्य पराक्रम बढ़ा के शत्रुओं से विजय को प्राप्त होना चाहिये ॥११२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजजनाः किं कृत्वा कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

(आ) (प्यायस्व) वर्धस्व (सम्) (एतु) सङ्गच्छताम् (ते) तुभ्यम् (विश्वतः) सर्वतः (सोम) चन्द्र इव वर्त्तमान (वृष्ण्यम्) वृष्णो वीर्यवतः कर्म (भव) द्व्यचोऽतस्तिङः [अष्टा०६.३.१३५] इति दीर्घः (वाजस्य) विज्ञानवेगयुक्तस्य स्वामिन आज्ञया (सङ्गथे) संग्रामे। [अयं मन्त्रः शत०७.३.१.४६ व्याख्यातः] ॥११२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सोम ! तादृशस्य विदुषः सङ्गात् ते वृष्ण्यं विश्वतः समेतु, तेन त्वमाप्यायस्व, वाजस्य वेत्ता सन् सङ्गथे विजयी भव ॥११२ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषैर्नित्यं वीर्य्यं वर्धयित्वा विजयेन भवितव्यम् ॥११२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी नेहमी पराक्रमात वाढ करून शत्रूंवर विजय मिळवावा.