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आ त्वा॑हार्षम॒न्तर॑भूर्ध्रु॒वस्ति॒ष्ठावि॑चाचलिः। विश॑स्त्वा॒ सर्वा॑ वाञ्छन्तु॒ मा त्वद्रा॒ष्ट्रमधि॑भ्रशत् ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। त्वा॒। अ॒हा॒र्ष॒म्। अ॒न्तः। अ॒भूः॒। ध्रु॒वः। ति॒ष्ठ॒। अवि॑चाचलि॒रित्यवि॑ऽचाचलिः। विशः॑। त्वा॒। सर्वाः॑। वा॒ञ्छ॒न्तु॒। मा। त्वत्। रा॒ष्ट्रम्। अधि॑। भ्र॒श॒त् ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और प्रजा के कर्मों का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे शुभ गुण और लक्षणों से युक्त सभापति राजन् ! (त्वा) आपको राज्य की रक्षा के लिये मैं (अन्तः) सभा के बीच (आहार्षम्) अच्छे प्रकार ग्रहण करूँ। आप सभा में (अभूः) विराजमान हूजिये (अविचाचलिः) सर्वथा निश्चल (ध्रुवः) न्याय से राज्यपालन में निश्चित बुद्धि होकर (तिष्ठ) स्थिर हूजिये (सर्वाः) सम्पूर्ण (विशः) प्रजा (त्वा) आपकी (वाञ्छन्तु) चाहना करें, (त्वत्) आपके पालने से (राष्ट्रम्) राज्य (माधिभ्रशत्) नष्ट-भ्रष्ट न होवे ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - उत्तम प्रजाजनों को चाहिये कि सब से उत्तम पुरुष को सभाध्यक्ष राजा मान के उसको उपदेश करें कि आप जितेन्द्रिय हुए सब काल में धार्मिक पुरुषार्थी हूजिये। आपके बुरे आचरणों से राज्य कभी नष्ट न होवे, जिससे सब प्रजापुरुष आप के अनुकूल वर्त्तें ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजाकर्म्माह ॥

अन्वय:

(आ) (त्वा) त्वां राजानम् (अहार्षम्) हरेयम् (अन्तः) सभामध्ये (अभूः) भवेः (ध्रुवः) न्यायेन राज्यपालने निश्चितः (तिष्ठ) स्थिरो भव (अविचाचलिः) सर्वथा निश्चलः (विशः) प्रजाः (त्वा) त्वाम् (सर्वाः) अखिलाः (वाञ्छन्तु) अभिलषन्तु (मा) न (त्वत्) (राष्ट्रम्) राज्यम् (अधि) (भ्रशत्) नष्टं स्यात्। [अयं मन्त्रः शत०६.७.३.८ व्याख्यातः] ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे शुभगुणलक्षण सभेश राजन् ! त्वा राज्यपालनायाहमन्तराहार्षम्। त्वमन्तरभूः, अविचाचलिर्ध्रुवस्तिष्ठ। सर्वा विशस्त्वा वाञ्छन्तु, तव सकाशाद् राष्ट्रं माऽधिभ्रशत् ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - उत्तमाः प्रजाजनाः सर्वोत्तमं पुरुषं सभाध्यक्षं राजानं कृत्वाऽनूपदिशन्तु। त्वं जितेन्द्रियः सन् सर्वदा धर्मात्मा पुरुषार्थी भवेः। न तवानाचाराद् राष्ट्रं कदाचिन्नष्टं भवेद् यतः सर्वाः प्रजास्त्वदनुकूलाः स्युः ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - उत्तम प्रजेने सर्वात उत्तम पुरुषाला राजा मानून त्याला असा उपदेश करावा की त्याने जितेन्द्रिय बनून सर्वकाळी धार्मिक व पुरुषार्थी बनावे. त्याच्या वाईट वर्तनाने राज्य कधीही नष्ट होता कामा नये. सर्व प्रजेने राजाच्या अनुकूल वर्तन करावे.