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अ॒भ्याव॑र्त्तस्व पृथिवि य॒ज्ञेन॒ पय॑सा स॒ह। व॒पां ते॑ऽअ॒ग्निरि॑षि॒तोऽअ॑रोहत् ॥१०३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि। आ। व॒र्त्त॒स्व॒। पृ॒थि॒वि॒। य॒ज्ञेन॑। पय॑सा। स॒ह। व॒पाम्। ते॒। अ॒ग्निः। इ॒षि॒तः। अ॒रो॒ह॒त् ॥१०३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:103


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पृथिवी के पदार्थों का विज्ञान कैसे करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य ! तू जो (पृथिवि) भूमि (यज्ञेन) सङ्गम के योग्य (पयसा) जल के (सह) साथ वर्त्तती है, उसको (अभ्यावर्त्तस्व) सब ओर से शीघ्र वर्ताव कीजिये। जो (ते) आप के (वपाम्) बोने को (इषितः) प्रेरणा किया (अग्निः) अग्नि (अरोहत्) उत्पन्न करता है, वह अग्नि गुण, कर्म और स्वभाव के साथ सब को जानना चाहिये ॥१०३ ॥
भावार्थभाषाः - जो पृथिवी सब का आधार, उत्तम रत्नादि पदार्थों की दाता, जीवन का हेतु, बिजुली से युक्त है, उस का विज्ञान भूगर्भविद्या से सब मनुष्यों को करना चाहिये ॥१०३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

भूस्थपदार्थविज्ञानं कथं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अभि) (आ) (वर्त्तस्व) वर्त्तते वा (पृथिवि) भूमिः (यज्ञेन) सङ्गमनेन (पयसा) जलेन (सह) (वपाम्) वपनम् (ते) तव (अग्निः) (इषितः) प्रेरितः (अरोहत्) रोहति। [अयं मन्त्रः शत०७.३.१.२१ व्याख्यातः] ॥१०३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य ! त्वं या पृथिवि भूमिर्यज्ञेन पयसा सह वर्त्तते, तामभ्यावर्त्तस्वाभिमुख्येनावर्त्तते। यया ते वपामिषितोऽग्निररोहत् स गुणकर्मस्वभावतः सर्वैर्वेदितव्यः ॥१०३ ॥
भावार्थभाषाः - या भूमिः सर्वस्याधारा रत्नाकरा जीवनप्रदा विद्युद्युक्ताऽस्ति, तस्या विज्ञानं भूगर्भविद्यातः सर्वैर्मनुष्यैः कार्यम् ॥१०३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - पृथ्वी ही सर्वांचा आधार, उत्तम रत्ने इत्यादी पदार्थांची दात्री व जीवनहेतू असलेल्या विद्युतने युक्त आहे. त्यासाठी माणसांनी भूगर्भविद्येचे विज्ञान जाणून संशोधन करावे.