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स॒ह रय्या निव॑र्त्त॒स्वाग्ने॒ पिन्व॑स्व॒ धार॑या। वि॒श्वप्स्न्या॑ वि॒श्वत॒स्परि॑ ॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒ह। र॒य्या। नि। व॒र्त्त॒स्व॒। अग्ने॑। पिन्वस्व॒। धार॑या। वि॒श्वप्स्न्येति॑ वि॒श्वऽप्स्न्या॑। वि॒श्वतः॑। परि॑। ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) तेजस्वी विद्वन् पुरुष ! आप दुष्ट व्यवहारों से (निवर्त्तस्व) पृथक् हूजिये (विश्वप्स्न्या) सब भोगने योग्य पदार्थों की भुगवाने हारी (धारया) सम्पूर्ण विद्याओं के धारण करने का हेतु वाणी तथा (रय्या) धन के (सह) साथ (विश्वतः) सब ओर से (परि) सब प्रकार (पिन्वस्व) सुखों का सेवन कीजिये ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् पुरुषों को चाहिये कि कभी अधर्म्म का आचरण न करें और दूसरों को वैसा उपदेश भी न करें। इस प्रकार सब शास्त्र और विद्याओं से विराजमान हुए प्रशंसा के योग्य होवें ॥१० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(सह) (रय्या) धनेन (नि) (वर्त्तस्व) (अग्ने) विद्वन् (पिन्वस्व) सेवस्व (धारया) धरति सकला विद्या यया सा वाक् तया। धारेति वाङ्नामसु पठितम् ॥ (निघं०१.११) (विश्वप्स्न्या) विश्वं सर्वं भोग्यं वस्तु प्सायते भक्ष्यते यया (विश्वतः) सर्वतः (परि)। [अयं मन्त्रः शत०६.७.३.६ व्याख्यातः] ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने विद्वन् ! त्वं दुष्टाद् व्यवहारान्निवर्तस्व, विश्वप्स्न्या धारया रय्या च सह विश्वतः परि पिन्वस्व सर्वदा सुखानि सेवस्व ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - न खलु विद्वांसः कदाचिदप्यधर्म्ममाचरेयुः, न चान्यानुपदिशेयुः। एवं सकलशास्त्रविद्यया विराजमानाः सन्तः प्रशंसिताः स्युः ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान पुरुषांनी कधीही अधर्माचे आचरण करू नये व इतरांनाही अधर्माचा उपदेश करू नये. याप्रमाणे सर्व शास्त्रे व विद्या शिकून प्रशंसायोग्य बनावे.