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सꣳशि॑तं मे॒ ब्रह्म॒ सꣳशि॑तं वी॒र्यं᳕ बल॑म्। सꣳशि॑तं क्ष॒त्रं जि॒ष्णु यस्या॒हमस्मि॑ पु॒रोहि॑तः ॥८१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सꣳशि॑त॒मिति॒ सम्ऽशि॑तम्। मे॒। ब्रह्म॑। सꣳशि॑त॒मिति॒ सम्ऽशि॑तम्। वी॒र्य᳕म्। बल॑म्। सꣳशि॑त॒मिति॒ सम्ऽशि॑तम्। क्ष॒त्रम्। जि॒ष्णु। यस्य॑। अ॒हम्। अस्मि॑। पु॒रोहि॑त॒ इति॑ पु॒रःऽहि॑तः ॥८१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:81


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पुरोहित यजमान आदि से किस-किस पदार्थ की इच्छा करे और क्या-क्या करे ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैं (यस्य) जिस यजमान पुरुष का (पुरोहितः) प्रथम धारण करने हारा (अस्मि) हूँ, उसका और (मे) मेरा (संशितम्) प्रशंसा के योग्य (ब्रह्म) वेद का विज्ञान और उस यजमान का (संशितम्) प्रशंसा के योग्य (वीर्य्यम्) पराक्रम प्रशंसित (बलम्) बल (संशितम्) और प्रशंसा के योग्य (जिष्णु) जय का स्वभाववाला (क्षत्रम्) क्षत्रियकुल होवे ॥८१ ॥
भावार्थभाषाः - जो जिसका पुरोहित और जो जिस का यजमान होवे, दोनों आपस में जिस विद्या, योगबल और धर्माचरण से आत्मा की उन्नति और ब्रह्मचर्य्य, जितेन्द्रियता तथा आरोग्यता से शरीर का बल बढ़े, वही कर्म निरन्तर किया करें ॥८१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पुरोहितो यजमानादिभ्यः किं किमिच्छेत् कुर्याच्चेत्याह ॥

अन्वय:

(संशितम्) प्रशंसनीयम् (मे) मम यजमानस्य (ब्रह्म) वेदविज्ञानम् (संशितम्) (वीर्य्यम्) पराक्रमः (बलम्) (संशितम्) (क्षत्रम्) क्षत्रियकुलम् (जिष्णु) जयशीलम् (यस्य) जनस्य (अहम्) (अस्मि) (पुरोहितः) यं यजमानः पुरः पूर्वं दधाति सः। पुरोहितः पुर एनं दधति ॥ (निरु०२.१२)। [अयं मन्त्रः शत०६.६.३.१४ व्याख्यातः] ॥८१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - अहं यस्य पुरोहितोऽस्मि तस्य मे मम तस्य च संशितं ब्रह्म मे तस्य च संशितं वीर्य्यं संशितं बलं सं शतं जिष्णु क्षत्रं चास्तु ॥८१ ॥
भावार्थभाषाः - यो यस्य पुरोहितो यजमानश्च भवेत् तावन्योऽन्यस्य यया विद्यया योगबलेन धर्माचरणेन चात्मोन्नतिर्ब्रह्मचर्येण जितेन्द्रियत्वेनारोग्येण च शरीरस्य बलं वर्धेत, तदेव कर्म सततं कुर्याताम् ॥८१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्या, योगबल व धर्माचरण यांच्याद्वारे आत्म्याची उन्नती होऊन ब्रह्मचर्य, जितेन्द्रियता व आरोग्य वाढून शरीराचे बल वाढेल असे कर्म पुरोहित व यजमान यांनी करावे.