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मा सु भि॑त्था॒ मा सु रि॒षोऽम्ब॑ धृ॒ष्णु वी॒रय॑स्व॒ सु। अ॒ग्निश्चे॒दं क॑रिष्यथः ॥६८ ॥

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पद पाठ

मा। सु। भि॒त्थाः॒। मा। सु। रि॒षः॒। अम्ब॑। धृ॒ष्णु। वी॒रय॑स्व। सु। अ॒ग्निः। च॒। इ॒दम्। क॒रि॒ष्य॒थः॒ ॥६८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:68


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर माता-पिता के प्रति पुत्रादि क्या-क्या कहें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अम्ब) माता ! तू हम को विद्या से (मा) मत (सुभित्थाः) छुड़ावे और (मा) मत (सुरिषः) दुःख दे (धृष्णु) दृढ़ता से (सुवीरयस्व) सुन्दर आरम्भ किये कर्म्म की समाप्ति कर। ऐसे करते हुए तुम माता और पुत्र दोनों (अग्निः) अग्नि के समान (च) (इदम्) करने योग्य इस सब कर्म्म को (करिष्यथः) आचरण करो ॥६८ ॥
भावार्थभाषाः - माता को चाहिये कि अपने सन्तानों को अच्छी शिक्षा देवे, जिससे ये परस्पर प्रीतियुक्त और वीर होवें और जो करने योग्य है वही करें, न करने योग्य कभी न करें ॥६८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मातापितरौ प्रति पुत्रादयः किं किं ब्रूयुरित्याह ॥

अन्वय:

(मा) (सु) (भित्था) भेदं कुर्य्याः (मा) (सु) (रिषः) हिंस्याः (अम्ब) मातः (धृष्णु) दार्ढ्यम् (वीरयस्व) आरब्धस्य कर्म्मणः समाप्तिमाचर (सु) (अग्निः) पावक इव (च) (इदम्) (करिष्यथः) करिष्यमाणं साधयिष्यथः। [अयं मन्त्रः शत०६.६.२.५ व्याख्यातः] ॥६८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अम्ब ! त्वमस्मान् विद्यातो मा सु भित्था मा सुरिषो धृष्णु सुवीरयस्व चैवं कुर्वन्तौ युवां मातापुत्रावग्निरिवेदं करिष्यथः ॥६८ ॥
भावार्थभाषाः - माता सुसन्तानान् सुशिक्षेत यत इमे परस्परं प्रीता भवेयुर्वीराश्च यत्कर्त्तव्यं तत्कुर्युरकर्त्तव्यं च नाचरेयुः ॥६८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - मातेने आपल्या मुलांना चांगले शिक्षण द्यावे. ज्यामुळे ते परस्पर प्रेमळ बनतील व वीर होतील. जे करण्यायोग्य आहे तेच करावे. जे करण्यायोग्य नाही ते कधीही करू नये.